_729380464.png)
Up Kiran, Digital Desk: इस साल मौसम ने जैसे भारत पर खास रहमत बरसाई हो। बंगाल की खाड़ी से लेकर अरब सागर तक लगातार बनते सिस्टम ने मानसून की रफ्तार थामने नहीं दी। नतीजा यह हुआ कि देश के लगभग हर हिस्से में बारिश ने अपने निशान छोड़े।
मौसम वैज्ञानिक कहते हैं कि इसकी सबसे बड़ी वजह है प्रशांत महासागर में चल रहा ला नीना। दिलचस्प बात यह है कि ला नीना के असर से सिर्फ बरसात ही नहीं, बल्कि आने वाली सर्दियों का मिजाज भी बदल सकता है। यानी इस बार ठंड का जोर सामान्य से ज्यादा रहने की संभावना है।
वैज्ञानिकों की चेतावनी
अमेरिका की मौसम एजेंसी ने साफ किया है कि सितंबर से नवंबर के बीच ला नीना बनने की संभावना पचास फ़ीसदी से अधिक है, और साल के आखिर तक यही संभावना और बढ़ सकती है। जाे पैटर्न एक बार शुरू हुआ, तो सर्दियों के साथ-साथ शुरुआती वसंत तक असर डाल सकता है।
ला नीना दरअसल जलवायु का एक प्राकृतिक चक्र है जिसमें भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर का पानी सामान्य से ठंडा हो जाता है। यह बदलाव ऊपर की हवाओं और मौसमीय धाराओं पर असर डालता है, जो पूरी दुनिया का मौसम प्रभावित करते हैं। अल नीनो बिल्कुल इसका उल्टा है, जब समुद्र का पानी गर्म हो जाता है और इसके असर से तापमान बढ़ने लगता है।
भारत पर क्या असर पड़ेगा
ला नीना बारिश को बढ़ाता है और मानसून को मजबूती देता है। यही वजह रही कि इस बार भारत में अधिकांश इलाकों को पानी भरपूर मिला। लेकिन इसके अगले पड़ाव में असर ठंड के रूप में दिखाई देगा। मौसम विज्ञानी मानते हैं कि भारत समेत एशिया के बड़े हिस्से में तापमान सामान्य से नीचे जा सकता है। यानी इस साल ठंडी हवाएं ज्यादा सख़्ती दिखा सकती हैं।
दूसरे हिस्सों में तस्वीर उलट है। अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के कई इलाकों में ला नीना सूखा ला देता है, जबकि अटलांटिक महासागर में यह तूफानों को जन्म देता है।
अल नीनो और ला नीना का चक्र
पिछले कुछ वर्षों में दुनिया ने दोनों पैटर्न का प्रभाव करीब से देखा। 2020 से 2022 तक लगातार तीन साल ला नीना हावी रहा, जिसे वैज्ञानिकों ने "ट्रिपल डीप ला नीना" कहा। उसके बाद 2023 में अल नीनो ने दस्तक दी और वैश्विक तापमान ने नया रिकॉर्ड छू लिया।
विशेषज्ञ मान रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण ये चक्र पहले से कहीं ज्यादा बार और ज्यादा ताकतवर रूप में उभर सकते हैं। यानी धरती का मौसम लगातार अनिश्चित होता जाएगा।
आने वाले दिनों की तैयारी
भारत के लिए ये संकेत साफ हैं। इस बार मानसून से खेतों को फायदा मिला है, लेकिन सर्दियों की दस्तक कठोर हो सकती है। किसानों से लेकर आम लोगों तक, सभी को अगले मौसम के लिए थोड़ी अतिरिक्त तैयारी करनी होगी।