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Up Kiran, Digital Desk: राजस्थान के नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल इन दिनों अपनी एक विवादित टिप्पणी के कारण सुर्खियों में हैं। उनके बयान ने न केवल राज्य की राजनीति को गर्मा दिया है, बल्कि सोशल मीडिया पर भी जमकर बहस छेड़ दी है। हनुमान बेनीवाल ने हाल ही में एक वीडियो में यह दावा किया कि हिंदुस्तान में जाट सबसे बड़ा क्षत्रिय हैं, उसके बाद यादव, गुर्जर, पटेल, पाटिल और मराठे आते हैं, और फिर राजपूतों का नंबर आता है। इस बयान ने ना केवल राजपूत समाज में गहरी नाराजगी पैदा की, बल्कि राजस्थान की राजनीति में जातीय समीकरणों पर सवाल भी खड़े कर दिए हैं।

राजपूत समाज में आक्रोश

बेनीवाल के इस बयान के बाद राजपूत नेताओं और संगठनों में गहरी नाराजगी देखने को मिली। कई नेताओं ने इसे अपमानजनक और असंवेदनशील टिप्पणी बताया। मारवाड़ राजपूत सभा के सचिव केवी सिंह चांदरख ने इसे बेनीवाल की "राजनीतिक हताशा" करार दिया और चेतावनी दी कि सर्व समाज की बैठक बुलाकर आगे की रणनीति तय की जाएगी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बेनीवाल का यह बयान महज एक व्यक्तिगत विचार है, या फिर यह आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए एक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है।

राजनीतिक समीकरण और जातीय ध्रुवीकरण

राजस्थान की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा अहम रहे हैं। जाट, यादव, गुर्जर, पटेल, पाटिल और मराठा—यह सभी सामाजिक रूप से प्रभावशाली जातियां हैं और इनका वोटबैंक चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाता है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बेनीवाल का यह बयान संभवतः 2028 के विधानसभा चुनावों में इन जातियों को एकजुट करने और गैर-भा.ज.पा. और गैर-कांग्रेस ध्रुवीकरण की एक नई रणनीति का हिस्सा हो सकता है। इसके जरिए वे अपनी पार्टी, आरएलपी, को एक विकल्प के रूप में स्थापित करना चाहते हैं।

बयान का उल्टा असर

हालांकि, यह दांव बेनीवाल के लिए उल्टा भी पड़ सकता है। राजस्थान में जाट और राजपूत दोनों ही समुदाय ऐतिहासिक रूप से ताकतवर रहे हैं और कई बार एक-दूसरे के खिलाफ आ खड़े हुए हैं। राजपूत समुदाय के बीच इस बयान के कारण गहरी नाराजगी फैलना स्वाभाविक है। इससे राज्य की सामाजिक सौहार्द्र को भी नुकसान हो सकता है। शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने इस बयान की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि जनता पहले भी ऐसे बयानों का जवाब दे चुकी है और भविष्य में भी ऐसा होगा।

बेनीवाल की राजनीतिक भविष्यवाणी

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हनुमान बेनीवाल अपने राजनीतिक वजूद को बनाए रखने के लिए नई सामाजिक गोलबंदी की कोशिश कर रहे हैं। पिछले चुनावों में आरएलपी को सीमित सफलता मिली थी, और अब वे खुद को एक राजनीतिक विकल्प के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। इस तरह के विवादों के जरिए वे न केवल अपनी पार्टी की पहचान मजबूत कर सकते हैं, बल्कि बीजेपी और कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टियों को भी चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं।

राजस्थान की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों और बयानबाजी से प्रभावित रही है। अब देखना यह है कि हनुमान बेनीवाल का यह बयान राज्य की राजनीति में क्या बदलाव लाता है—क्या यह एक समाधान की ओर जाएगा, या फिर जातीय ध्रुवीकरण की खाई को और गहरा करेगा। चुनावी रणभूमि में इस विवाद का क्या असर पड़ेगा, यह तो वक्त ही बताएगा, मगर फिलहाल यह राज्य की राजनीति में एक नई हलचल जरूर पैदा कर चुका है।

 

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