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Up Kiran, Digital Desk: बिहार में विधानसभा चुनाव खत्म होते ही भाजपा के भीतर असंतोष की परतें तेजी से बाहर आ रही हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह का निलंबन इसी नाराज़गी की सबसे बड़ी मिसाल बन गया है। सिंह का कहना है कि उन्होंने केवल उन उम्मीदवारों पर सवाल उठाए थे जिनकी छवि लोगों के बीच खराब मानी जाती है।

“मेरी बात में पार्टी विरोध जैसा क्या था?”—सिंह का सवाल

मीडिया से बातचीत में आरके सिंह ने साफ कहा कि पार्टी ने अब तक यह स्पष्ट नहीं किया कि उनकी पार्टी विरोधी गतिविधियाँ आखिर थीं क्या। उन्होंने बताया कि उन्होंने कारण बताओ नोटिस का जवाब पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को भेज दिया है।
सिंह बोले, “अगर मैं कहूँ कि अपराध या भ्रष्टाचार से जुड़े लोगों को टिकट देना गलत है, तो यह पार्टी विरोध कैसे हो गया? इससे तो पार्टी की ही बदनामी होती है।”

टिकट बंटवारे पर सबसे तीखी प्रतिक्रिया

सिंह का यह बयान तभी सामने आया जब उन्होंने भाजपा और एनडीए के सहयोगी दलों पर “आपराधिक या संदिग्ध छवि वाले नेताओं” को टिकट देने का आरोप लगाया। उन्होंने उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और अनंत सिंह जैसे नामों का सीधा उदाहरण दिया।
उनका कहना था कि कुछ नेता चुनावी फ़ायदे के लिए पार्टी की नैतिकता को किनारे कर चुके हैं और यही वजह है कि विश्वसनीयता पर असर पड़ा है।

चुनाव आयोग पर भी हमले, हिंसा को बताया ‘जंगल राज’

चुनाव अभियान के दौरान भी सिंह लगातार आक्रामक रहे। उन्होंने दुलारचंद यादव की हत्या जैसी घटनाओं का ज़िक्र करते हुए कहा कि प्रशासन चुनाव के दौरान कानून व्यवस्था नहीं संभाल पाया। उन्होंने इन हालात को “शासन का पतन” करार दिया। घटना के बाद संबंधित पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई हुई, पर सवाल बने रहे।

निलंबन के बाद अनुशासन अभियान तेज

आरके सिंह ही नहीं, भाजपा ने बिहार में अपने दायरे को और कड़ा किया है। पार्टी ने एमएलसी अशोक कुमार अग्रवाल और कटिहार की मेयर उषा अग्रवाल को भी पार्टी विरोध के आरोप में निलंबित कर दिया है। आरोप है कि उन्होंने अपने बेटे को दूसरे दल से चुनाव लड़ने के लिए समर्थन दिया। दोनों से एक हफ्ते के भीतर जवाब मांगा गया है।