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Up Kiran, Digital Desk: भारत हिन्दू राष्ट्र बनेगा' - यह एक ऐसा नारा है जो आजकल खूब सुनने को मिलता है. कई संत और नेता इस पर अपनी-अपनी राय रखते हैं. हाल ही में, जब जगतगुरु रामभद्राचार्य जी ने एक बार फिर पूरे विश्वास के साथ यह ऐलान किया कि भारत जल्द ही हिन्दू राष्ट्र बनने वाला है, तो इस पर एक नई बहस छिड़ गई. लेकिन इस बार यह बहस नेताओं में नहीं, बल्कि खुद बड़े-बड़े संतों के बीच शुरू हो गई है.

खास तौर पर ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी ने इस तरह के ऐलानों पर एक बड़ा और अलग दृष्टिकोण सामने रखा है, जिससे कई लोग हैरान हैं.

क्या कहा था जगतगुरु रामभद्राचार्य ने?

जगतगुरु रामभद्राचार्य जी अपने बयानों के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने कई मौकों पर कहा है कि उनके पास इस बात के "सबूत" हैं कि भारत हिन्दू राष्ट्र बनकर रहेगा और इसकी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. उनके इस बयान से उनके अनुयायियों में भारी उत्साह देखने को मिलता है.

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी की अलग राय

रामभद्राचार्य जी के इस बयान के ठीक विपरीत, शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी का मानना कुछ और है. उन्होंने इस तरह के ऐलानों की ज़रूरत पर ही सवाल खड़ा कर दिया है.

शंकराचार्य जी का कहना है, "भारत तो स्वभाव से, संस्कृति से और संविधान की भावना से पहले से ही एक सनातन यानी हिन्दू राष्ट्र है." उन्होंने समझाया कि जिस देश में बहुसंख्यक आबादी की भावनाओं का सम्मान करते हुए कानून बनाए जाएं, वही तो हिन्दू राष्ट्र है. उनका तर्क है कि भारत का संविधान भले ही 'सेक्युलर' शब्द का इस्तेमाल करता हो, लेकिन उसकी आत्मा सनातन संस्कृति और हिन्दू मूल्यों पर ही आधारित है.

उन्होंने सीधे तौर पर पूछा, जब देश पहले से ही हिन्दू राष्ट्र है, तो फिर बार-बार यह घोषणा करने की क्या ज़रूरत है कि इसे हिन्दू राष्ट्र बनाया जाएगा?

शंकराचार्य जी को इस बात की चिंता है कि इस तरह के बयानों से समाज में बिना वजह का टकराव और भ्रम पैदा होता है. उनका मानना है कि कुछ लोग राजनीतिक फायदे के लिए इस तरह की बातें करते हैं.? 

संतों के बीच मतभेद क्यों

इस पूरे मामले से यह साफ़ है कि 'हिन्दू राष्ट्र' के मुद्दे पर सभी संत एकमत नहीं हैं. एक तरफ रामभद्राचार्य जैसे संत हैं जो इसकी औपचारिक घोषणा के पक्षधर हैं, तो दूसरी तरफ शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी जैसे संत हैं जो भारत को पहले से ही एक हिन्दू राष्ट्र मानते हैं और किसी नई घोषणा को समाज के लिए अनावश्यक और विभाजनकारी समझते हैं.

वहीं, अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती जैसे कुछ अन्य संत भी मानते हैं कि भारत एक सांस्कृतिक हिन्दू राष्ट्र है.

यह बहस दिखाती है कि हिन्दू धर्म के भीतर भी अलग-अलग विचारों का कितना सम्मान है. लक्ष्य भले ही एक हो - सनातन संस्कृति का संरक्षण - लेकिन रास्ते और विचारों को लेकर मतभेद होना स्वाभाविक है.