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Up Kiran, Digital Desk: अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर एक नई रणनीतिक तस्वीर उभर रही है, जहां चीन, रूस, ईरान और पाकिस्तान एक सुर में बोलते नजर आए। इन चारों देशों ने मिलकर अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान या उसके आसपास फिर से किसी भी सैन्य अड्डे की स्थापना के विचार को सिरे से खारिज कर दिया है। यह कदम ऐसे समय पर आया है जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अफगान क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य उपस्थिति दोबारा स्थापित करने की इच्छा जताई थी।

काबुल की संप्रभुता पर सख्त रुख

न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 80वें सत्र के दौरान हुई चतुर्पक्षीय बैठक में इन देशों ने साफ कर दिया कि अफगानिस्तान की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बैठक के बाद एक संयुक्त बयान जारी किया, जिसमें कहा गया कि वे उन ताकतों के खिलाफ खड़े हैं जो अफगानिस्तान की धरती को फिर से सैन्य गतिविधियों के लिए इस्तेमाल करना चाहती हैं।

आतंकवाद पर चिंता, अफगान शांति को बताया जरूरी

इस बैठक में न केवल सैन्य अड्डों पर विरोध जताया गया, बल्कि अफगानिस्तान में तेजी से बदलते सुरक्षा हालात पर चिंता भी व्यक्त की गई। खासकर ISIL, अल-कायदा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP), बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) और मजीद ब्रिगेड जैसे संगठनों के बढ़ते खतरे को लेकर चेतावनी दी गई। चारों देशों का मानना है कि अफगानिस्तान में स्थिरता और शांति पूरे क्षेत्र की सुरक्षा के लिए जरूरी है।

पाकिस्तान की दोहरी भूमिका पर सवाल

दिलचस्प बात यह है कि पाकिस्तान इस बैठक का हिस्सा उस वक्त बना जब उसके प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सेना प्रमुख आसिम मुनीर हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात कर चुके हैं और अमेरिका को खनिज निवेश के लिए आमंत्रित भी कर चुके हैं। ऐसे में पाकिस्तान का यह कदम उसके राजनयिक संतुलन को लेकर सवाल खड़े करता है।

अफगानिस्तान के आर्थिक पुनर्निर्माण पर भी जोर

चारों देशों ने यह भी स्पष्ट किया कि वे केवल विरोध ही नहीं, बल्कि अफगानिस्तान के विकास में सक्रिय सहयोगी बनना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि वे ऐसी किसी भी क्षेत्रीय पहल का समर्थन करेंगे जो अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को फिर से खड़ा करने में मददगार हो। उनका उद्देश्य है – आतंक और युद्ध से मुक्त, एक स्थायी और मजबूत अफगानिस्तान।