Up Kiran, Digital Desk: बिहार में इन दिनों एक नया नाम हर चर्चा में है दिव्या गौतम। दिलचस्प बात यह है कि दिव्या का नाम दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के परिवार से भी जुड़ा है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो वह सुशांत की चचेरी बहन हैं। हालांकि, दिव्या का कहना है कि वह अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहती हैं। वे खुद मानती हैं कि सुशांत ने अपने सपनों को ज़िंदा रखने की बात हमेशा की, और अब वही भावना उन्हें राजनीति में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही है।
शिक्षा से लेकर सिस्टम तक, फिर जनता के बीच
दिव्या का सफर एक आम नौकरी से हटकर कुछ अलग करने का है। उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन में पोस्ट ग्रेजुएशन किया और फिर कॉलेज में पढ़ाना शुरू किया। बाद में BPSC क्लियर कर सरकारी सेवा में भी आ गईं, लेकिन जल्द ही समझ आया कि बदलाव सिर्फ दफ्तर की कुर्सियों से नहीं होता। इसीलिए उन्होंने नौकरी को अलविदा कहा और ज़मीनी राजनीति में उतरने का फैसला किया। उनका मानना है कि असली सुकून तब मिलता है जब आम लोगों की समस्याओं को करीब से समझा जाए और उनके समाधान के लिए काम किया जाए।
युवा चेहरा, नया विश्वास
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) यानी CPI(ML) ने दिव्या गौतम को पटना की दिघा विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है। पार्टी को उम्मीद है कि दिव्या नए दौर की नेता साबित होंगी, जो नारेबाज़ी से ज्यादा काम पर विश्वास रखती हैं। दिव्या डिजिटल मीडिया की ताकत को भी समझती हैं और ग्रामीण समाज की हकीकत से भी अच्छी तरह वाकिफ हैं। उनके मुद्दे बेहद जमीनी हैं — महिलाओं की हक़दारी, युवाओं की बेरोजगारी और शिक्षा की स्थिति।
युवा मतदाताओं में उत्साह
दिव्या की राजनीति में एंट्री खासकर युवा मतदाताओं को प्रभावित कर रही है। सोशल मीडिया पर उनकी पकड़ और विचारों में स्पष्टता उन्हें बाकी नेताओं से अलग बनाती है। कई युवाओं को लगता है कि वे उनके जैसे ही सोचती हैं, इसलिए उन्हें सही मायनों में अपना प्रतिनिधि मानने लगे हैं। यह देखा जा रहा है कि उनके पोस्टर्स सिर्फ प्रचार नहीं, बल्कि एक उम्मीद का चेहरा बन गए हैं।
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