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Up kiran,Digital Desk : सोचिए, आप किसी अपने को लेकर बिहार के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल PMCH पहुँचते हैं, इस उम्मीद में कि यहाँ जान बच जाएगी। लेकिन आप मेन गेट पर पहुँचते हैं और पाते हैं कि इमरजेंसी का दरवाज़ा ही बंद है। अंदर कोई डॉक्टर देखने वाला नहीं है और मरीज़ बाहर तड़प रहे हैं।

बुधवार से पटना के PMCH का यही हाल है।

हुआ यूँ कि बुधवार को एक मरीज़ की इलाज के दौरान मौत हो गई। इसके बाद, दुखी और ग़ुस्से में भरे परिवार वालों और जूनियर डॉक्टरों के बीच पहले बहस हुई, जो देखते-ही-देखते मारपीट में बदल गई। इस घटना के बाद, अस्पताल के सारे जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर चले गए।

उनका ग़ुस्सा इतना था कि उन्होंने इमरजेंसी सेवा तक ठप कर दी, जो किसी भी अस्पताल की रीढ़ होती है। नतीजा यह हुआ कि जो मरीज़ पहले से भर्ती थे या जो नई उम्मीद लेकर वहाँ पहुँच रहे थे, वे सब बेसहारा हो गए। मरीज़ और उनके घरवाले एक काउंटर से दूसरे काउंटर तक भटक रहे हैं, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है।

यह कोई पहली बार नहीं है। दो दिन पहले ही सुरक्षाकर्मियों की मारपीट का वीडियो सामने आया था, और अब यह घटना। इन लड़ाइयों के बीच, वो आम इंसान पिस रहा है जो सैकड़ों किलोमीटर का सफ़र करके एक उम्मीद से यहाँ आता है। सवाल यह है कि डॉक्टरों और मरीज़ों के परिवारों के बीच का यह झगड़ा आख़िर कब ख़त्म होगा और इसका ख़ामियाज़ा बेबस मरीज़ कब तक भुगतते रहेंगे?