Up Kiran, Digital Desk: पाकिस्तान और तालिबान के बीच का रिश्ता एक पेचीदा और दिलचस्प कहानी है, जिसमें दोस्ती से लेकर दुश्मनी तक की परतें हैं। आज, जब पाकिस्तान और तालिबान के बीच दुश्मनी सामने आई है, तो यह सवाल उठता है कि पाकिस्तान, जो कभी तालिबान के लिए सबसे बड़ा समर्थन था, अब उनसे क्यों उलझ रहा है? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें इतिहास के पन्नों में झांकने की जरूरत है।
पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव की जड़ें
पाकिस्तान और अफगानिस्तान, दोनों देशों के बीच हमेशा से ही रिश्ते तनावपूर्ण रहे हैं। इसका मुख्य कारण ड्यूरंड लाइन है, जिसे ब्रिटिश साम्राज्य ने खींचा था। अफगानिस्तान इस सीमा को कभी नहीं मानता, और पाकिस्तान के साथ उसकी लंबी सीमा संघर्ष का कारण बनती रही है। यह विवाद समय के साथ और भी गहरा होता गया।
सुपरपावर की जंग और पाकिस्तान का रोल
दूसरे विश्व युद्ध के बाद, दुनिया दो प्रमुख ताकतों के बीच बंट गई – अमेरिका और सोवियत संघ। अफगानिस्तान का स्थान सोवियत संघ के बॉर्डर के पास था, और उसने वहां अपनी पसंद की सरकार स्थापित करने की कोशिश की। अफगानिस्तान में इस्लामी कट्टरपंथी मुजाहिदीन गुट इन योजनाओं का विरोध कर रहे थे, जिन्हें अमेरिका का समर्थन प्राप्त था। पाकिस्तान ने इन मुजाहिदीन को प्रशिक्षण देने और उन्हें हथियार मुहैया कराने का काम किया।
तालिबान का जन्म और पाकिस्तान का समर्थन
1989 में सोवियत संघ अफगानिस्तान से वापस लौट गया, लेकिन पाकिस्तान का ख्वाब अफगानिस्तान में अपनी कठपुतली सरकार स्थापित करने का सपना अधूरा रहा। यही वह वक्त था, जब पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में शरिया आधारित सरकार बनाने के लिए मदरसों के छात्रों को तालिबान में तब्दील कर दिया। तालिबान का गठन 1994 में हुआ और पाकिस्तान ने इसे अपनी नीति के हिस्से के रूप में अपनाया, ताकि अफगानिस्तान को अपने नियंत्रण में रखा जा सके।
अमेरिका के खिलाफ तालिबान
1996 तक, तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया। पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने तालिबान की सरकार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी। लेकिन 2001 में जब अल-कायदा ने अमेरिका में हमले किए, तो तालिबान का साथ देने के कारण पाकिस्तान की स्थिति और भी जटिल हो गई। अमेरिका ने तालिबान के खिलाफ मोर्चा खोला, और पाकिस्तान ने एक दोहरी नीति अपनाई – एक ओर वह अमेरिका के साथ था, दूसरी ओर वह तालिबान को शरण दे रहा था।
टीटीपी का उदय और पाकिस्तान का संकट
तालिबान को समर्थन देने के बाद पाकिस्तान के लिए नई समस्याएं खड़ी हो गईं। 2007 में पाकिस्तान के कबायली इलाकों में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) का जन्म हुआ। यह संगठन पाकिस्तान के भीतर आतंकवादी गतिविधियां बढ़ाने लगा। टीटीपी के मुखिया बैतुल्लाह मेहसूद ने पाकिस्तान की सरकार को उखाड़ फेंकने की योजना बनाई, और यही वही मुद्दा था, जिसने पाकिस्तान को तालिबान के खिलाफ एक अलग रुख अपनाने पर मजबूर किया।
पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ीं
टीटीपी की बढ़ती ताकत और पाकिस्तान के अंदर उनके हमले पाकिस्तान के लिए बड़ी चुनौती बन गए। 2014 में पेशावर में हुए एक स्कूल हमले में 132 बच्चों की हत्या ने पाकिस्तान को झकझोर कर रख दिया। हालांकि पाकिस्तान ने इन हमलों के जवाब में सैन्य अभियान शुरू किया, लेकिन टीटीपी की ताकत में कमी नहीं आई। 2021 में जब अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान से वापस लौटे, तालिबान ने काबुल पर फिर से कब्जा कर लिया, और पाकिस्तान को लगने लगा कि इससे टीटीपी के खिलाफ मदद मिलेगी। लेकिन उलटा असर हुआ, टीटीपी ने तालिबान से प्रेरित होकर अपनी गतिविधियों को और बढ़ा दिया।
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