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Up Kiran, Digital Desk: बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण को लेकर सियासी उबाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची में भारी फेरबदल को लेकर विपक्ष खासा हमलावर है। इसी कड़ी में, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बड़ा बयान देते हुए संकेत दिया है कि यदि स्थिति नहीं सुधरी तो विपक्ष चुनावों का बहिष्कार कर सकता है।

चुनाव बहिष्कार पर विचार कर सकता है विपक्ष

पत्रकारों से बातचीत में जब तेजस्वी यादव से पूछा गया कि क्या विपक्ष विधानसभा चुनाव से दूरी बना सकता है, तो उन्होंने कहा, "इस पर विचार किया जा सकता है। हम जनता की भावनाएं समझेंगे, सभी सहयोगी दलों से सलाह लेंगे, और तभी कोई ठोस निर्णय लिया जाएगा।" तेजस्वी ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कोई भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रक्षा से जुड़ा मुद्दा है।

“यह चुनाव नहीं, लोकतंत्र से खिलवाड़ है”

तेजस्वी यादव ने मतदाता सूची से लाखों नामों को हटाए जाने पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह सिर्फ सामान्य तकनीकी संशोधन नहीं है, बल्कि एक संगठित प्रयास प्रतीत होता है, जिसके ज़रिए विपक्षी मतदाताओं को निशाना बनाया जा रहा है। उनका कहना था कि यह कार्रवाई विशेष रूप से कमजोर, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्गों को हाशिए पर डालने के उद्देश्य से की जा रही है।

तेजस्वी ने चेताया, "यह लोकतंत्र की जड़ों को हिलाने की कोशिश है। मतदाता सूची को इस तरह से साफ किया जा रहा है कि एक विशेष वर्ग का मताधिकार ही समाप्त हो जाए।"

विपक्षी मतदाता आधार को निशाना बनाने का आरोप

तेजस्वी ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग और भाजपा के बीच मिलीभगत है और मतदाता सूची के नाम पर विपक्ष के समर्थक मतदाताओं को हटाया जा रहा है। उन्होंने कहा, “जब निष्पक्षता ही नहीं है, तो फिर चुनाव कराने का औचित्य क्या रह जाता है?” उन्होंने यह भी कहा कि चुनावों में पारदर्शिता समाप्त हो रही है और यह एक खतरनाक मिसाल बन सकती है।

क्या चुनाव आयोग ‘सो रहा था’? तेजस्वी ने उठाए सवाल

तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग के उस आंकड़े पर भी सवाल खड़े किए जिसमें यह बताया गया कि जनवरी से जून 2025 के बीच 52.66 लाख नाम मतदाता सूची से हटाए गए। उन्होंने पूछा कि जब इतने बड़े स्तर पर हटाने की कार्रवाई हो रही थी, तो पहले इन नामों की जांच क्यों नहीं हुई?

उन्होंने विशेष रूप से 18.66 लाख मृत मतदाताओं और 26.01 लाख लोगों के स्थायी रूप से स्थानांतरित होने के आंकड़ों को "अविश्वसनीय" करार दिया और आरोप लगाया कि बिना किसी ठोस भौतिक सत्यापन के यह पूरी प्रक्रिया एकतरफा और पक्षपाती लगती है।

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