
Up Kiran, Digital Desk: एक समय था जब अमेरिका जाकर काम करना, जिसे "अमेरिकन ड्रीम" कहते हैं, हर भारतीय नौजवान का सपना हुआ करता था। लेकिन अब लगता है जैसे इस सपने में दरारें आने लगी हैं। सिलिकॉन वैली में काम कर रहे भारतीय पेशेवर, जो एच-1बी (H-1B) और एल-1 (L-1) जैसे अस्थायी वीज़ा पर वहां हैं, एक अनजाने डर और अनिश्चितता के माहौल में जी रहे हैं।
एक हालिया सर्वे ने इस बेचैनी को उजागर किया है। इस सर्वे में शामिल लगभग 45% भारतीयों ने कहा कि अगर उनकी नौकरी चली जाती है, तो वे भारत वापस आ जाएंगे। वहीं, 26% लोग किसी दूसरे देश में अपनी किस्मत आज़माने की सोचेंगे। यह दिखाता है कि अमेरिका पर उनका भरोसा अब पहले जैसा नहीं रहा। जब उनसे पूछा गया कि क्या वे फिर से काम करने के लिए अमेरिका को चुनेंगे, तो 65% लोगों का जवाब 'नहीं' या 'पता नहीं' में था।
इस डर के पीछे कई वजहें हैं। सबसे बड़ा डर नौकरी जाने का है, जिसके बाद उन्हें सिर्फ 60 दिनों के अंदर देश छोड़ना पड़ता है। यह समय नई नौकरी ढूंढने के लिए अक्सर काफी नहीं होता। कई लोगों ने बताया कि वे खुद या उनके किसी जानने वाले को इस स्थिति का सामना करना पड़ा है।
लोगों की चिंता सिर्फ नौकरी तक ही सीमित नहीं है। उन्हें यह भी डर है कि भारत लौटने पर उनकी सैलरी कम हो जाएगी, उनका लाइफस्टाइल पहले जैसा नहीं रहेगा और परिवार को यहां फिर से एडजस्ट करने में दिक्कतें आएंगी।
सरकार की बदलती नीतियां भी इस आग में घी का काम कर रही हैं। पहले एच-1बी वीज़ा एक लॉटरी सिस्टम से मिलता था, जिसमें सबकी बराबर की हिस्सेदारी होती थी। लेकिन अब इसे बदलकर सैलरी के आधार पर कर दिया गया है। इसका मतलब है कि जिसकी सैलरी ज़्यादा होगी, उसे वीज़ा मिलने की संभावना भी ज़्यादा होगी। इस नए नियम से कम अनुभव वाले या फ्रेशर्स के लिए अमेरिका में नौकरी पाना और भी मुश्किल हो जाएगा।
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