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क्या आप जानते हैं कि दक्षिण भारत में एक ऐसी जगह है, जहाँ 200 साल से भी पुराना पशुओं का बाजार लगता है? यह बाजार आज भी उतना ही गुलजार है, जितना शायद सदियों पहले हुआ करता था. यह जगह है तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले का पोल्लाची कस्बा, जहाँ दक्षिण भारत का सबसे बड़ा मवेशी बाजार लगता है.

एक बाजार, जो इतिहास का गवाह है

पोल्लाची का यह मवेशी बाजार सिर्फ एक बाजार नहीं, बल्कि एक जीती-जागती विरासत है. स्थानीय रिकॉर्ड बताते हैं कि यह बाजार अंग्रेजों के आने से भी पहले से मौजूद था. उस जमाने में, जब राजा-महाराजाओं का राज था, तब यहाँ घोड़ों और हाथियों का भी व्यापार होता था. आज यहाँ मुख्य रूप से गाय और भैंसों की खरीद-बिक्री होती है.

हफ्ते में दो दिन, हजारों का व्यापार

यह बाजार हर मंगलवार और गुरुवार को लगता है. इन दो दिनों में यहाँ का नजारा देखने लायक होता है. तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और यहाँ तक कि ओडिशा से भी किसान और व्यापारी सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करके यहाँ आते हैं. केरल सीमा के पास होने के कारण, यहाँ केरल के व्यापारियों की भी भारी भीड़ रहती है.

मंगलवार को बाजार अपने पूरे शबाब पर होता है, और लगभग 2,000 से 3,000 मवेशियों की खरीद-फरोख्त होती है. वहीं, गुरुवार को यह आंकड़ा 500 से 1,000 के बीच रहता है.

किसानों और व्यापारियों की जीवनरेखा

यह बाजार ग्रामीण किसानों और व्यापारियों के लिए किसी जीवनरेखा से कम नहीं है. यहाँ जल्लीकट्टू और रेक्ला (बैलगाड़ी दौड़) जैसे पारंपरिक खेलों के लिए खास तौर पर बैल खरीदे जाते हैं. अच्छी नस्ल की करावई, सिंधु और गिर गायों की भी भारी मांग रहती है.

यहाँ जानवरों की कीमत उनकी नस्ल और उपयोग के आधार पर तय होती है. एक रेसिंग बैल की कीमत 1 लाख से 1.5 लाख रुपये तक जा सकती है, जबकि एक दुधारू गाय 50,000 से 60,000 रुपये में मिल जाती है.

पोल्लाची का यह बाजार सिर्फ व्यापार का केंद्र नहीं, बल्कि दक्षिण भारत की कृषि और सांस्कृतिक विरासत का एक अनूठा प्रतीक है, जहाँ परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है.