Up kiran,Digital Desk : मंगलवार की सुबह हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके की सुबह आम सुबह जैसी नहीं थी। गलियों में एक अजीब सा सन्नाटा था, चप्पे-चप्पे पर पुलिस और PAC के जवान तैनात थे, और आसमान में ड्रोन मंडरा रहे थे। पूरा शहर एक छावनी में तब्दील हो चुका था। सबकी सांसें अटकी हुई थीं, और निगाहें दिल्ली की ओर सुप्रीम कोर्ट पर टिकी थीं, जहाँ रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर बसे 4,365 से ज़्यादा घरों के भविष्य का 'सुप्रीम' फैसला होना था।
दिन भर के तनाव, आशंकाओं और उम्मीदों के बाद शाम को जब सुनवाई के 10 दिसंबर तक टलने की खबर आई, तो हजारों लोगों ने राहत की सांस ली। खतरा फिलहाल टल गया है, लेकिन खत्म नहीं हुआ।
सुबह से ही 'जीरो जोन' था बनभूलपुरा
फैसले के बाद किसी भी तरह के बवाल की आशंका को देखते हुए पुलिस-प्रशासन ने बनभूलपुरा को किले में तब्दील कर दिया था।
- छावनी बना इलाका: पूरे इलाके को 'जीरो जोन' बना दिया गया था। 8 थानों की पुलिस, PAC के जवान और RPF-GRP मिलाकर 400 से ज़्यादा सुरक्षाकर्मी तैनात थे।
- ड्रोन और CCTV से नज़र: अंदरूनी गलियों और छतों पर ड्रोन और CCTV कैमरों से लगातार नजर रखी जा रही थी।
- अफसरों का पैदल मार्च: SSP डॉ. मंजूनाथ टीसी खुद सुबह ही बनभूलपुरा थाने पहुँच गए और अपनी टीम के साथ पूरे इलाके में पैदल घूमकर हालात का जायजा लेते रहे।
- रास्ते बंद, शहर अलर्ट: शहर में भारी गाड़ियों की एंट्री रोक दी गई थी। बनभूलपुरा की ओर जाने वाले सभी रास्तों पर बैरियर लगा दिए गए थे, जिससे लोगों को कई किलोमीटर तक पैदल भी चलना पड़ा।
इंतज़ार का एक-एक पल था भारी
- घरों में भर लिया था राशन: पिछले साल हुई कार्रवाई और उसके बाद लगे कर्फ्यू को याद कर कई परिवारों ने पहले से ही कई दिनों का राशन और सब्जियां खरीदकर रख ली थीं।
- हर कोई मोबाइल से था चिपका: गलियों के नुक्कड़ पर लोग झुंड में खड़े होकर बस एक ही चर्चा कर रहे थे - "क्या होगा?" हर कोई अपने मोबाइल पर दिल्ली में बैठे परिचितों या सोशल मीडिया से फैसले की अपडेट लेने में लगा था।
- मुख्य सड़कों पर सन्नाटा, गलियों में टेंशन: मुख्य मार्गों पर कई दुकानें बंद रहीं, लेकिन अंदर गलियों में जिंदगी सामान्य दिखने की कोशिश कर रही थी, पर हवा में एक भारीपन और तनाव साफ महसूस हो रहा था।
फैसला टला, अब आगे क्या?
शाम 4 बजे जैसे ही सुनवाई टलने की खबर आई, तनाव का माहौल कुछ हद तक छंट गया। SSP ने बताया कि अब ज़्यादातर पुलिस फोर्स वापस थानों में लौट जाएगी, लेकिन इलाके में स्थानीय पुलिस और PAC के जवान अगली सुनवाई तक तैनात रहेंगे। निगरानी पहले की तरह ही सख्त रखी जाएगी।
क्या कहते हैं दोनों पक्ष?
याचिकाकर्ता अब्दुल मतीन सिद्दीकी ने कहा, "हम 2007 से यह लड़ाई लड़ रहे हैं। हमें कोर्ट पर पूरा भरोसा है। हमारे वकीलों ने हमारा पक्ष मजबूती से रखा है। जो भी फैसला आएगा, हमें मंजूर होगा।"
वहीं, दूसरी तरफ से याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी का कहना है, "यह मामला किसी की महत्वाकांक्षा का नहीं, बल्कि पूरे कुमाऊं के विकास का है। रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटना ही चाहिए। हमारा संघर्ष रंग लाएगा।"
अब सबकी निगाहें 10 दिसंबर पर टिक गई हैं। एक शहर ने राहत की सांस तो ली है, लेकिन हजारों परिवारों के सिर पर लटक रही अनिश्चितता की तलवार अभी भी अपनी जगह कायम है।
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