Up kiran,Digital Desk : मुरादाबाद के एक घर में इस वक्त सिर्फ खामोशी और सिसकियां हैं। दीवारों में एक ही सवाल गूंज रहा है, जो हर किसी का कलेजा चीर देता है - "पापा कहाँ गए? वो घर कब आएंगे?"
यह सवाल हैं शिक्षक और बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) सर्वेश सिंह की चार मासूम बेटियों के। उन्हें क्या पता कि जिस पिता के आने का वे इंतजार कर रही हैं, वो अब इस दुनिया में नहीं हैं और कभी लौटकर नहीं आएंगे।
एक वीडियो ने तोड़ा हर दिल
इस घर के दर्द को और भी गहरा कर दिया उस वायरल वीडियो ने, जिसमें सर्वेश अपनी मौत से पहले अपनी बेबसी पर रो रहे थे। जब उनकी एक बेटी ने किसी के मोबाइल में अपने पापा को इस तरह रोते हुए देखा, तो वह जोर-जोर से चीख पड़ी। उस मासूम की चीख सुनकर घर में मौजूद हर शख्स का दिल टूट गया और वे भी खुद को रोने से नहीं रोक पाए।
क्यों एक पिता ने मौत को गले लगा लिया?
सर्वेश सिंह, जो भगतपुर के एक सरकारी स्कूल में सहायक अध्यापक थे, ने चुनावी काम के दबाव के चलते फांसी लगाकर अपनी जान दे दी। 7 अक्टूबर को उन्हें बीएलओ की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन काम पूरा न होने के तनाव ने उन्हें इस कदर तोड़ दिया कि उन्होंने मौत को चुन लिया। पीछे छोड़ गए एक सुसाइड नोट, अपनी पत्नी बबली, बूढ़ी माँ सोमवती और चार बेटियां - तनिष्क, माही, नाइयू और रूही।
अब इन बेटियों ने अपने पापा के बिना खाना तक खाने से मना कर दिया है। माँ और दादी किसी तरह बहला-फुसलाकर उन्हें दो निवाले खिलाती हैं, लेकिन उनके सवालों के आगे बेबस हो जाती हैं।
एक और कहानी: खुद मांगी थी यह जिम्मेदारी
इस मामले में एक और हैरान करने वाली बात सामने आई है। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, जिस बूथ की जिम्मेदारी सर्वेश को मिली थी, वह पहले किसी और शिक्षक को दी गई थी। जब उन्होंने मना कर दिया, तो सर्वेश सिंह ने खुद आगे बढ़कर लिखित में यह ड्यूटी करने की इच्छा जताई थी। किसी ने सोचा भी नहीं था कि जो जिम्मेदारी वह खुद मांग रहे हैं, वही उनकी जान ले लेगी।
बच्चों की आंखों में आंसू: "हमारे सर अब नहीं रहे"
इस घटना का असर सिर्फ परिवार पर ही नहीं, बल्कि उस स्कूल पर भी पड़ा है जहां सर्वेश पढ़ाते थे। जब सोमवार को बच्चे स्कूल पहुंचे और उन्हें पता चला कि उनके प्यारे सर अब इस दुनिया में नहीं हैं, तो वे फूट-फूटकर रोने लगे। स्कूल के दूसरे टीचर भी अपने आंसू नहीं रोक पाए और बच्चों को किसी तरह शांत कराया।
प्रशासन की मदद, लेकिन जख्म बहुत गहरा है
जिला प्रशासन ने परिवार की मदद के लिए हाथ बढ़ाया है। डीएम के निर्देश पर सर्वेश की पत्नी को दो लाख रुपये का चेक दिया गया है और परिवार में किसी एक को सरकारी नौकरी देने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। लेकिन क्या कोई मदद या नौकरी उस पिता को वापस ला सकती है, जिसका इंतजार उसकी बेटियां कर रही हैं? यह एक ऐसा जख्म है जो शायद कभी नहीं भरेगा।
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