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Up Kiran, Digital Desk: आजकल हर माता-पिता का सपना होता है कि उनका बच्चा पढ़ाई में अव्वल आए, अच्छे नंबर लाए और बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ हासिल करे। लेकिन क्या सिर्फ़ किताबी ज्ञान और अच्छे ग्रेड ही सफलता की गारंटी हैं? शायद नहीं। आज की दुनिया में एक ऐसी चीज़ है जो डिग्रियों से भी ज़्यादा ज़रूरी है, और वो है भावनात्मक समझ (Emotional Intelligence)।

रिसर्च बताती है कि जो बच्चे अपनी भावनाओं को समझना और संभालना जानते हैं, वे ज़िंदगी में ज़्यादा ख़ुश और सफल होते हैं। इसी वजह से अब दुनिया भर के स्कूल सिर्फ़ गणित और विज्ञान पर नहीं, बल्कि बच्चों को 'इंसान' बनाने वाली इस कला पर भी ज़ोर दे रहे हैं।

क्या है ये 'भावनात्मक समझ' का जादू?

भावनात्मक समझ या इमोशनल इंटेलिजेंस कोई रॉकेट साइंस नहीं है। आसान शब्दों में, इसके कुछ हिस्से हैं:

ख़ुद को समझना: क्या मुझे ग़ुस्सा आ रहा है? क्या मैं दुखी हूँ? अपनी भावनाओं को पहचानना इसका पहला क़दम है।

ख़ुद को संभालना: ग़ुस्से या निराशा में कोई ग़लत क़दम न उठा लेना। अपने इमोशंस पर क़ाबू रखना दूसरी सबसे बड़ी कला है।

दूसरों को समझना: सामने वाला कैसा महसूस कर रहा है? उसकी जगह ख़ुद को रखकर सोचना (जिसे हमदर्दी या Empathy कहते हैं)।

रिश्ते निभाना: दूसरों के साथ मिलकर काम करना, झगड़े सुलझाना और अच्छे दोस्त बनाना।

सोचिए, जिस बच्चे के पास ये गुण होंगे, क्या वो कभी ज़िंदगी में अकेला या असफल रह सकता है?

स्कूलों में क्यों है इसकी ज़रूरत?

आजकल बच्चे छोटी-छोटी बातों पर तनाव में आ जाते हैं, अकेलापन महसूस करते हैं और उनमें धैर्य की कमी देखी जा रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि हमारा पूरा ध्यान सिर्फ़ अकादमिक्स (पढ़ाई-लिखाई) पर है।

जब स्कूलों में इमोशनल इंटेलिजेंस सिखाई जाती है, तो बच्चे:

पढ़ाई पर बेहतर ध्यान लगा पाते हैं।

दोस्तों और शिक्षकों के साथ उनके रिश्ते अच्छे होते हैं।

वे टीम में काम करना सीखते हैं।

असफलता से निराश नहीं होते, बल्कि उससे सीखते हैं।

यह सिर्फ़ स्कूल तक ही सीमित नहीं रहता। यही बच्चे जब बड़े होकर नौकरी करते हैं या अपना परिवार बसाते हैं, तो वे बेहतर लीडर, अच्छे सहकर्मी और समझदार पार्टनर बनते हैं।

सिर्फ़ स्कूल ही नहीं, माता-पिता की भी है ज़िम्मेदारी

स्कूल तो अपनी कोशिश कर ही रहे हैं, लेकिन बच्चों के पहले गुरु तो उनके माता-पिता ही होते हैं। बच्चों से उनकी भावनाओं के बारे में बात करना, उन्हें सुनना और समझना बहुत ज़रूरी है। जब घर और स्कूल दोनों मिलकर बच्चों को अकादमिक ज्ञान के साथ-साथ भावनात्मक रूप से भी मज़बूत बनाएँगे, तभी हम एक ऐसी पीढ़ी तैयार कर पाएँगे जो सिर्फ़ सफल ही नहीं, बल्कि ख़ुश रहना भी जानती हो।