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यह कहने के लिए किसी दार्शनिक की जरुरत नहीं है कि जब देश युद्ध की खाइयों में जाता है तो देशवासियों की नियति दुर्दशा और दरिद्रता बन जाती है, राजकोष में धन शस्त्रों और गोला-बारूद पर खर्च हो जाता है या शिक्षा और स्वास्थ्य का पतन हो जाता है। यह एक कड़वा सच है। पाकिस्तान के पीएम शाहबाज शरीफ ने दुबई में अल अरबिया समाचार चैनल को दिए एक इंटरव्यू में सार्वजनिक रूप से ज्ञान की ये बातें कहीं। हालांकि, हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को यह बात 75 साल बाद समझ में आई।
पाक पीएम यह स्वीकार करते हुए कि पड़ोसी भारत कैसे गरीबी और बेरोजगारी के विरूद्ध लड़ रहा है और हम निरंतर हिंसा के काम कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि भारत की तरह पाकिस्तान भी समृद्धि चाहता है, हम अपने बच्चों को शिक्षा देना चाहते हैं, हम बेरोजगारी खत्म करना चाहते हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लड़ाई बंद करने और शांतिपूर्ण समाधान निकालने के लिए साथ बैठक की भी अपील की।
मूल रूप से शाहबाज शरीफ के बयान और उनके कार्यालय के सारांश में कुछ भी नया या अप्रत्याशित नहीं है। वह शांति की भाषा बोलने वाले पाकिस्तान के पहले पीएम नहीं हैं और आखिरी भी नहीं होंगे।
क्योंकि, पीएम या कोई अन्य नेता ऐसी भाषा का इस्तेमाल करता है कि वहां की जासूसी एजेंसी आईएसआई आंखें मूंद लेती है, देश के कोने-कोने और खासकर कश्मीर घाटी में हिंसा करने वाले आतंकी मुखिया खफा हैं। यह अब तक का अनुभव रहा है कि सेना के तत्वावधान में सत्ता भोगने वाले नेता दुम पहनते हैं और जो लोग युद्ध की आगोश में हैं, वे शांति की राह में अपने आप को मूर्ख बनाते हैं।