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Up Kiran, Digital Desk: दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने भारतीय समाज की उस सच्चाई को सामने रखा, जिससे अक्सर नजरें चुराई जाती हैं। उन्होंने साफ कहा कि भले ही संविधान में सभी को बराबरी का अधिकार मिला हो, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बहुत दूर है।

FGM जैसी परंपराएं अब भी जिंदा!

CJI ने खासतौर पर दाउदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में फैली FGM (Female Genital Mutilation) की कुप्रथा की बात की। यह अमानवीय परंपरा, जिसमें छोटी बच्चियों की जननांगों को विकृत किया जाता है, आज भी कई परिवारों में जारी है। इसकी वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक अहम जनहित याचिका लम्बित है, जिसे 9 जजों की संविधान पीठ देखेगी।

बेटियों पर अब खतरा सिर्फ बाहर नहीं, स्क्रीन पर भी है

तकनीकी तरक्की ने जहां लड़कियों को नए मौके दिए हैं, वहीं खतरे भी बढ़ा दिए हैं। अब बच्चियां सिर्फ गलियों में नहीं, बल्कि मोबाइल और लैपटॉप की स्क्रीन पर भी असुरक्षित हैं। साइबरबुलिंग, ऑनलाइन स्टॉकिंग, डीपफेक वीडियो और डेटा चोरी जैसे अपराध लड़कियों की मानसिक और डिजिटल आज़ादी पर सीधा हमला करते हैं।

संस्थानों को चेताया, सिर्फ कानून नहीं, नज़रिया भी बदलें

CJI गवई ने नीति निर्माताओं और कानून प्रवर्तन एजेंसियों से अपील की कि वे तकनीक को डर का नहीं, आज़ादी का साधन बनाएं। उन्होंने कहा कि आज बालिकाओं की सुरक्षा का मतलब सिर्फ उनके शरीर की नहीं, उनके डिजिटल अस्तित्व की भी रक्षा करना है।