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72 हूरें ये शब्द आपने शायद कई चुटकुलों, धार्मिक चर्चाओं या अफवाहों में सुना होगा। कुछ इसे मज़ाक में लेते हैं, तो कुछ इसे स्वर्ग की असल परिभाषा मान बैठते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि असल में इस्लाम में 72 हूरों की बात कितनी सच है और यहे धारणा आई कहाँ से।
हूरों का परिचय: इस्लामी अवधारणा में स्वर्ग के साथी
इस्लाम धर्म की प्रमुख धार्मिक पुस्तकों — कुरान और हदीस — में "हूर" का जिक्र कई जगहों पर आता है। हूरों को एक प्रकार के स्वर्गिक प्राणी के रूप में दर्शाया गया है, जो सुंदर, पवित्र और निर्दोष हैं। उन्हें उन लोगों के लिए एक इनाम के तौर पर बताया गया है जो अपने जीवन में ईश्वर की आज्ञा का पालन करते हैं और स्वर्ग के अधिकारी बनते हैं।
हदीसों में खासतौर पर जिहाद और पुण्य के कर्मों से जुड़ी बातों में, हूरों का ज़िक्र एक इनाम या पुरस्कार के रूप में किया गया है।
क्या सच में 72 हूरों का जिक्र कुरान में है
सीधा जवाब: नहीं।
कुरान में "72" हूरों का कोई सीधा जिक्र नहीं है। ये संख्या किसी विशिष्ट हदीस से जुड़ी हुई बताई जाती है, लेकिन इस पर भी विद्वानों के बीच काफी मतभेद है।
इस्लामी विद्वानों की मानें तो "72 हूरें" एक सांकेतिक या रूपकात्मक संख्या हो सकती है, न कि कोई सुनिश्चित वादा। कई विद्वान मानते हैं कि यह एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मिथक है, जिसे समय के साथ अतिशयोक्ति के रूप में प्रचारित कर दिया गया।
हिंदू धर्म में अप्सराएं ही हूरे
धार्मिक कथाओं की बात करें तो हिंदू धर्म में "अप्सराएं" ठीक उसी तरह स्वर्गिक सुंदरियों के रूप में वर्णित होती हैं जैसे इस्लाम में "हूरें"। पुराणों और वेदों में बताया गया है कि पुण्य आत्माओं को स्वर्ग में अप्सराओं का साथ मिलता है।
इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हर संस्कृति ने स्वर्ग को सुख, आनंद और सुंदरता से जोड़ा है, लेकिन यह अधिकतर प्रतीकात्मक रहा है न कि वास्तविक।
आपको बता दें कि जब धार्मिक मान्यताओं को आधारहीन अतिशयोक्ति, मजाक या राजनीतिक हथियार बना दिया जाता है, तो वह समाज में गलतफहमियां और धार्मिक द्वेष को बढ़ावा देती है।
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