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Up Kiran Digital Desk: देश की शीर्ष अदालत में इन दिनों एक बेहद संवेदनशील और चर्चित मामला चल रहा है। वक्फ संशोधन कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर देशभर में बहस तेज हो गई है। सोमवार को इस मामले की सुनवाई एक बार फिर टल गई, अब अगली सुनवाई 15 मई को होगी। पिछली सुनवाई में अदालत ने केंद्र सरकार से तीखे सवाल पूछे थे और तब तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था।
इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में अब तक कई याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं, जिनमें वक्फ कानून के संवैधानिक प्रावधानों को चुनौती दी गई है। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल याचिकाकर्ताओं की तरफ से कोर्ट में पक्ष रख रहे हैं, जबकि सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दलीलें दे रहे हैं।
आइए समझते हैं कि वक्फ संशोधन कानून को किस आधार पर चुनौती दी गई है और सुप्रीम कोर्ट ने किन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर सवाल उठाए हैं।
वक्फ संशोधन कानून को किन आधारों पर दी गई है चुनौती?
याचिकाकर्ताओं ने इस कानून को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 29 और 30 का उल्लंघन बताया है।
अनुच्छेद 25 – हर व्यक्ति को अपनी पसंद के धर्म को मानने, उसका पालन करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में गैर-मुस्लिमों की भागीदारी धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है।
अनुच्छेद 26 – धार्मिक समुदायों को अपने धार्मिक संस्थानों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है। नए कानून के तहत यदि यह अधिकार सीमित किया जाता है, तो यह अनुच्छेद 26 का उल्लंघन होगा।
अनुच्छेद 29 और 30 – अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति, भाषा और शिक्षा के संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार देता है। वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति इन अधिकारों का उल्लंघन मानी जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट के सामने उठे तीन मुख्य सवाल
1. वक्फ संपत्तियों को डिनोटिफाई करने की अनुमति मिलनी चाहिए या नहीं?
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या उन वक्फ संपत्तियों को हटाया जा सकता है जिनका विवाद कोर्ट में लंबित है या जो पहले से वक्फ घोषित की जा चुकी हैं। इस पर सरकार को अपना रुख स्पष्ट करना होगा।
2. कलेक्टर के अधिकारों की सीमा क्या होगी?
नए कानून के तहत कलेक्टर को विवादित वक्फ संपत्तियों की जांच का अधिकार मिला है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे निष्पक्षता प्रभावित होगी? यदि कलेक्टर जांच में वक्फ संपत्ति को सरकारी संपत्ति घोषित कर दे तो क्या यह उचित होगा?
3. क्या वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति संवैधानिक है?
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि धार्मिक संस्थाओं में सिर्फ संबंधित धर्म के लोगों को ही स्थान मिलना चाहिए। उदाहरणस्वरूप, हिंदू और सिख बोर्ड में केवल उसी धर्म के सदस्य होते हैं। नए संशोधन में गैर-मुस्लिमों को ‘विशेष सदस्य’ के रूप में शामिल करना धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया गया है।
सबसे बड़ी चिंता: वक्फ बाय यूजर की स्थिति
सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से पूछा – “वक्फ बाय यूजर” क्यों हटाया गया? अदालत ने इस पर चिंता जताई कि कई मस्जिदें और धार्मिक स्थल हैं जो सैकड़ों साल पुराने हैं, जिनके पास आज के दस्तावेज़ नहीं हैं। यदि “वक्फ बाय यूजर” को हटाया जाता है, तो इन स्थलों की कानूनी मान्यता कैसे सुनिश्चित की जाएगी?
इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 1923 के कानून में भी संपत्ति का पंजीकरण आवश्यक था और अब भी वक्फ प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन पर कोई रोक नहीं है। अगर किसी को कलेक्टर के निर्णय से आपत्ति है, तो वह वक्फ ट्रिब्यूनल जा सकता है।
नजरें 15 मई पर टिकीं
अब जब अगली सुनवाई 15 मई को होनी है, पूरे देश की नजर इस पर टिकी है कि सुप्रीम कोर्ट क्या दिशा निर्देश देता है। क्या यह मामला केवल वक्फ संपत्ति के प्रबंधन का है, या फिर इसके जरिए धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के मूल स्वरूप पर बहस छिड़ गई है?
यह मामला ना केवल कानूनी बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण बन गया है। आने वाले फैसले न केवल वक्फ संपत्तियों के भविष्य को तय करेंगे बल्कि संविधान के मूलभूत सिद्धांतों की भी एक नई व्याख्या प्रस्तुत कर सकते हैं।
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