Up Kiran, Digital Desk: बिहार के पश्चिम चंपारण जिले का लौरिया विधानसभा क्षेत्र केवल एक राजनीतिक इकाई नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत समृद्ध इलाका है। कभी कांग्रेस का अभेद्य किला रहा यह क्षेत्र अब भारतीय जनता पार्टी का गढ़ बन चुका है। समय के साथ बदले राजनीतिक समीकरणों ने यहां की राजनीति को एक नई दिशा दी है।
राजनीतिक बदलाव की कहानी
लौरिया में राजनीति ने कई रंग बदले हैं। 1957 से लेकर साल 2000 तक यहां कांग्रेस का दबदबा रहा, जिसने सात बार जीत दर्ज की। लेकिन बीसवीं सदी के अंत और इक्कीसवीं सदी की शुरुआत ने इस समीकरण को पूरी तरह बदल दिया। 2000 के बाद से कांग्रेस की पकड़ ढीली पड़ने लगी और उसकी जगह जेडीयू और बीजेपी जैसे दलों ने ली। 2010 में निर्दलीय उम्मीदवार विनय बिहारी की अप्रत्याशित जीत ने यह संदेश दिया कि लौरिया के मतदाता बदलाव को तैयार हैं। दिलचस्प यह है कि बाद में वही विनय बिहारी भाजपा में शामिल हो गए और वर्तमान में क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी कर रहे हैं।
लौरिया की जनसंख्या और निर्वाचन संरचना
लौरिया की कुल आबादी लगभग 4.4 लाख है, जिसमें पुरुषों की संख्या महिलाओं से थोड़ी अधिक है। चुनाव आयोग की नवीनतम मतदाता सूची के अनुसार, इस क्षेत्र में 2.62 लाख से अधिक पंजीकृत मतदाता हैं। इनमें पुरुष मतदाता करीब 1.38 लाख और महिलाएं लगभग 1.24 लाख हैं। यह क्षेत्र योगापट्टी सामुदायिक विकास खंड और लौरिया प्रखंड की 17 पंचायतों में बंटा हुआ है, जहां ग्रामीण विकास और चुनावी सक्रियता दोनों स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
सामाजिक संरचना में परिवर्तन
2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद यह सीट आरक्षित से सामान्य वर्ग में आ गई। इस परिवर्तन ने स्थानीय राजनीति के लिए नए दरवाज़े खोले और अलग-अलग समुदायों को राजनीतिक हिस्सेदारी के अवसर प्रदान किए। इससे यहां का सामाजिक समीकरण भी बदलने लगा, जिसका असर अब मतदाता प्रवृत्ति में भी दिखता है।
इतिहास की छांव में सियासत
लौरिया केवल राजनीति की ज़मीन नहीं है, यह पुरातात्विक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी बेजोड़ है। नंदनगढ़ के प्राचीन टीले, जो नंद वंश और चाणक्य के युग से जुड़े माने जाते हैं, आज भी लोगों में इतिहास के प्रति आकर्षण बनाए हुए हैं। कहा जाता है कि यहां बुद्ध के अस्थि अवशेषों पर बना स्तूप था, जो क्षेत्र की बौद्ध विरासत को दर्शाता है।
इसी के पास स्थित है अशोक स्तंभ — लगभग 2300 वर्ष पुराना यह धरोहर न सिर्फ मौर्यकालीन समृद्धि का प्रतीक है, बल्कि यह लौरिया को पूरे देश में एक खास पहचान भी देता है। 35 फीट ऊंचे और 34 टन वजनी इस स्तंभ की संरचना आज भी उतनी ही प्रभावशाली है जितनी तब रही होगी जब सम्राट अशोक ने इसे स्थापित किया था।
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