कर्णप्रयाग, श्रीनगर, नैनीताल, उत्तरकाशी, बागेश्वर की स्थिति बताती है कि उत्तराखंड में कई स्थानों पर जोशीमठ की कहानी दोहराई जा रही है या फिर दोहराने के काफी करीब है. 2013 केदारनाथ त्रासदी के बाद इस तरह की घटनाओं में इजाफा हुआ है, मगर इस संबंध में प्रशासन की क्या योजना है, यह कोई नहीं जानता।
कई स्थान ऐसे हैं जहां ड्रिलिंग या ब्लास्टिंग के बाद जमीन धंसने या भूस्खलन की घटनाएं बढ़ी हैं। इसे रोकना कोई नहीं जानता, सर्वे हो चुके हैं, रिपोर्ट आ चुकी है, चेतावनी जारी हो चुकी है, मगर सब कुछ कागजों और फाइलों तक ही सिमट कर रह गया है.
भूवैज्ञानिक ने बताया कि 'जोशीमठ की तरह नैनीताल, उत्तरकाशी, बागेश्वर, श्रीनगर, कर्णप्रयाग में भी यही पैटर्न देखने को मिल रहा है. इसकी 4 वजह ओवर कंस्ट्रक्शन, खराब सीवेज सिस्टम, पहाड़ों में बड़े प्रोजेक्ट्स और गलत तरीके से नदियों के बहाव को डायवर्ट करना है। उत्तराखंड में मकानों में दरार की समस्या कोई नई नहीं है। 2010 में श्रीनगर में टिहरी झील के आसपास के घरों में दरारें आ गईं। विस्थापित आबादी को स्थिर वन भूमि में बसाने की जरूरत है।
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