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hill culture: उत्तरकाशी की पहाड़ी संस्कृति का प्रतीक 'ओखली' अब विलुप्त होने के कगार पर है। ओखली एक पारंपरिक उपकरण है, जिसका उपयोग अनाज को पीसने के लिए किया जाता था। यह पहाड़ी जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा रहा है, मगर आधुनिकता और बदलती जीवनशैली के कारण अब ये उपकरण किताबों में ही देखने को मिलता है।

पारंपरिक ओखली का निर्माण मुख्यत: स्थानीय कारीगरों द्वारा किया जाता था, और इसका उपयोग केवल घरेलू कामों में ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी होता था। ओखली का प्रयोग करते समय महिलाएं अक्सर एक साथ मिलकर काम करती थीं, जिससे सामाजिक बंधन मजबूत होते थे।

आज के समय में जैसे-जैसे लोग आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल कर रहे हैं, ओखली का प्रयोग कम होता जा रहा है। इससे न केवल स्थानीय कारीगरों की आजीविका प्रभावित हो रही है, बल्कि पहाड़ी संस्कृति के अहम पहलुओं का भी ह्रास हो रहा है। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह अमूल्य धरोहर केवल किताबों में ही सिमट कर रह जाएगी।

ओखली के संरक्षण और इसके महत्व को समझने की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को इस सांस्कृतिक धरोहर का अनुभव हो सके। इसके लिए स्थानीय स्तर पर जागरूकता फैलाना और पारंपरिक तकनीकों को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।

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