धर्म डेस्क। हम जब मस्ती में होते हैं तो अनजाने में ही तालियां बजाने लगते हैं या यूँ भी कह सकते हैं कि दोनों हथेलियां खुद ही मस्ती को ताल देने लगती हैं। कीर्तन-भजन में भी प्रायः यही होता है। इन तालियों की भी बड़ी ही रोचक कहानी है। ताली बजाना एक तरह का योग भी है। ताली बजाने का सीधा संबंध सकारात्मक ऊर्जा के संचार से भी है। अब तो विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के विशेषज्ञ भी लोगों को बेहतर स्वास्थ्य के लिए तालियां बजाने की सलाह देते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार ताली बजाने की परंपरा की शुरुआत भक्त प्रहलाद से हुई थी। उल्लेखनीय है कि भक्त प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप स्वयं को सर्वशक्तिमाण मानता था और किसी भी देवी देवता की आराधना करने के बजाय खुद की पूजा करवाता था। लेकिन भक्त प्रहलाद भगवान विष्णु की आराधना करते थे। भजन कीर्तन करते समय प्रहलाद वाद्य यंत्रों को भी बजाते थे। इस तरह वह सुर में ताल मिलाते थे।
भक्त प्रह्लाद के इस क्रिया कलाप को देखकर हिरण्यकश्यप क्रोधित हुआ और उसने ने प्रहलाद के सारे वाद्य यंत्रों को नष्ट कर दिया था, ताकि वे विष्णु की आराधना ना कर सकें। इसके बाद प्रहलाद ने भगवान विष्णु के भजनों को ताल देने के लिए हाथ से ही ताली बजाना शुरू कर दिया। इस तरह से भजन-कीर्तन से ताली की शुरुआत हुई।
लोक मान्यता के अनुसार भजन-कीर्तन के दौरान ताली बजाकर भगवान को पुकारा जाता है। ताली बजाने से भगवान का ध्यान आकर्षित होता है। भजन-कीर्तन के दौरान ताली बजाने से नकारात्मक ऊर्जा के साथ ही पापों का नाश होता है। दोनों हथेलियों को लगातार सुरबद्ध तरीके से पीटने से एक ताल का निर्माण हुआ और वह ताल की धुन लोगों को कर्णप्रिय लगी, इसलिए इसका नाम ताली पड़ गया।
इसी तरह मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि ताली बजाने से हथेलियों के एक्यूप्रेशर प्वाइंट्स पर दबाव पड़ा है, जो हृदय और फेफड़ों को मजबूत बनाता है। ताली बजाने से ब्लड प्रेशर भी सामान्य रहता है। इसके अलावा ताली बजाना एक योग भी है। यही नहीं ताली बजाने से मन को भी सकून मिलता है।
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