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Up Kiran, Digital Desk: आज जब देशभर में नई-नई सड़कें बन रही हैं, एक्सप्रेसवे पर रफ्तार से गाड़ियां दौड़ रही हैं, तो ज़रा सोचिए कि इस आधुनिक बुनियादी ढांचे की शुरुआत कहां से हुई थी? बहुत कम लोग जानते हैं कि भारत में सड़कों का इतिहास 2500 साल पुराना है। एक ऐसी सड़क भी है जो न सिर्फ भारत की, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की पहचान बन चुकी है।

उत्तरपथ से जी.टी. रोड तक का सफर

जिस ऐतिहासिक मार्ग की बात हो रही है, वह है ग्रैंड ट्रंक रोड (GT Road)। प्राचीन भारत में इसे उत्तरपथ के नाम से जाना जाता था। यह मार्ग गंगा किनारे बसे शहरों को पंजाब और आगे टैक्सिला से जोड़ता था। इतिहासकार मानते हैं कि इस सड़क की नींव मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ने रखी थी। उस समय यह व्यापार और सैन्य आवागमन का प्रमुख ज़रिया हुआ करता था।

शेरशाह सूरी ने दी नई पहचान

समय के साथ यह प्राचीन सड़क टूट-फूट का शिकार हो गई थी। लेकिन 16वीं सदी में शेरशाह सूरी ने इसे नए सिरे से बनवाया। उन्होंने इस मार्ग को 'सड़क-ए-आज़म' नाम दिया और इसे पत्थरों से पक्का करवाया। सड़क के दोनों ओर छायादार पेड़ लगाए गए, मुसाफिरों के लिए सराय बनाई गईं और दूरी नापने के लिए खास मील के पत्थर (खोस मीनार) लगाए गए। इतना ही नहीं, शेरशाह ने इसी मार्ग पर पहली घुड़सवार डाक सेवा भी शुरू की थी।

जब अंग्रेजों ने बदला नाम और बढ़ाई पहुंच

ब्रिटिश काल में इस ऐतिहासिक सड़क को नया नाम मिला — ग्रैंड ट्रंक रोड। यह सड़क आज भी उत्तर भारत के सबसे व्यस्त मार्गों में से एक है। एक समय था जब यह मार्ग बांग्लादेश के चटगांव से शुरू होकर भारत के कोलकाता, वाराणसी, दिल्ली और अमृतसर से होते हुए पाकिस्तान के लाहौर और पेशावर तक जाता था। यह यात्रा अंततः अफगानिस्तान के काबुल में खत्म होती थी।

आज भी है राष्ट्रीय महत्व की सड़क

आधुनिक भारत में इस ऐतिहासिक मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग 2 (NH-2) का दर्जा दिया गया है, जो दिल्ली से कोलकाता तक फैला है। हालांकि अब यह अंतरराष्ट्रीय सीमा के कारण पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक नहीं जाता, लेकिन इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व आज भी कायम है। व्यापार, संस्कृति और इतिहास — तीनों की धड़कन इस सड़क में अब भी सुनाई देती है।