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Up Kiran, Digital Desk: आंध्र प्रदेश के राज्य गीत 'मा तेलुगु थाल्लिकी' (Maa Telugu Thalliki) के रचयिता, महान तेलुगु लेखक और कवि शंकरांबडी सुंदरचारी (Sankarambadi Sundaracharyulu) को उनके जयंती या पुण्यतिथि पर याद किया गया। यह अवसर न केवल उनके साहित्यिक योगदान को समर्पित था, बल्कि तेलुगु भाषा और संस्कृति के प्रति उनके अनमोल समर्पण को भी रेखांकित करता है। तिरुपति में, जहाँ उनका जन्म हुआ था, साहित्यिक समुदाय, सरकारी अधिकारी और उनके प्रशंसक बड़ी संख्या में एकत्र हुए। उन्होंने सुंदरचारी की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की। यह आयोजन आंध्र प्रदेश के साहित्यिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण था, जो युवा पीढ़ी को महान साहित्यकारों के कार्यों से परिचित कराने का एक प्रयास था।

शंकरांबडी सुंदरचारी: तेलुगु साहित्य के एक स्तंभ
शंकरांबडी सुंदरचारी, जिनका जन्म 10 अगस्त 1914 को हुआ था और जिनका निधन 8 अप्रैल 1977 को हुआ, एक प्रभावशाली लेखक और कवि थे, भले ही उनकी मूल पहचान तमिल मूल की थी। उन्होंने अपना जीवन तेलुगु साहित्य को समृद्ध करने में समर्पित कर दिया। उनकी सबसे बड़ी पहचान आंध्र प्रदेश के राजकीय गीत 'मा तेलुगु थाल्लिकी' को लिखने के रूप में है। यह गीत आज भी तेलुगु भाषियों के दिलों में मातृभाषा के प्रति प्रेम और गौरव की भावना जगाता है।

'मा तेलुगु थाल्लिकी': एक प्रेरणादायक राष्ट्रगान
सुंदरचारी ने 1942 में 'मा तेलुगु थाल्लिकी' गीत की रचना की थी। मूल रूप से यह गीत एक तेलुगु फिल्म 'दीना बंधु' के लिए लिखा गया था, लेकिन किन्हीं कारणों से इसे फिल्म में शामिल नहीं किया गया। इससे निराश होने के बावजूद, उनके गीत को His Master's Voice (HMV) ने खरीद लिया और संगीतकार टंगुटूरी सूर्यकुमारी और एस. बालासरस्वती द्वारा संगीतबद्ध किया गया। यह गीत अत्यधिक लोकप्रिय हुआ और इसने तेलुगु लोगों के हृदय में एक विशेष स्थान बना लिया, अंततः इसे आंध्र प्रदेश का राजकीय गीत घोषित किया गया। इसके अलावा, उन्होंने 'सुंदर रामायणम' और 'बुद्धगीता' जैसी कई अन्य महत्वपूर्ण रचनाएँ भी कीं, जिनकी व्यापक रूप से प्रशंसा हुई।

श्रद्धांजलि सभाएं: साहित्य की विरासत को सहेजना
विभिन्न अवसरों पर, जैसे कि उनकी 102वीं जयंती (2016) और 48वीं पुण्यतिथि (2025) पर, तिरुपति में उनके प्रति श्रद्धांजलि सभाओं का आयोजन किया गया है। इन आयोजनों में शंकरांबडी साहित्य पीठम जैसे साहित्यिक संगठनों ने सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने सुंदरचारी की प्रतिमा पर फूल चढ़ाए और उनके साहित्यिक योगदान को याद किया। साहित्यकार मेदसनी मोहन जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने भी इन सभाओं का नेतृत्व किया। इन आयोजनों का मुख्य उद्देश्य बीते हुए महान साहित्यकारों की उपलब्धियों को वर्तमान पीढ़ी तक पहुँचाना और उन्हें लोकप्रिय बनाना है। यह कार्य तेलुगु साहित्य के संरक्षण और संवर्धन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

अनसुना नायक: साहित्य के लिए जीवन समर्पित:यह विडंबना है कि तेलुगु भाषा को राष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले सुंदरचारी को अक्सर एक "अनसुना नायक" (unsung hero) माना जाता है। उनके कई कार्य पुनर्मुद्रण के लिए उपलब्ध नहीं हैं, जिससे उनकी विरासत को सहेजने में चुनौतियाँ आ रही हैं। हालाँकि, उनके द्वारा रचित राज्य गीत हमेशा उन्हें तेलुगु समुदाय में अमर रखेगा। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि हमारी नई पीढ़ियों को ऐसे महान साहित्यकारों के बारे में पता चले जिन्होंने हमारी सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध किया है।

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