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Up Kiran, Digital Desk: अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर मंडराता एक और संकट टल गया है। अमेरिका और चीन के बीच चल रही ट्रेड वार का अगला पड़ाव टल गया है क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर 90 दिनों की मोहलत देते हुए व्यापार समझौते को बढ़ा दिया है। यह घोषणा ट्रंप ने खुद अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर की, जिसमें उन्होंने कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करने की जानकारी दी।
व्यापार जगत ने ली राहत की सांस
यह निर्णय ऐसे समय पर आया है जब अमेरिका और चीन दोनों के कारोबारी जगत में अनिश्चितता गहराती जा रही थी। अगर समय पर राहत नहीं मिलती, तो अमेरिका द्वारा चीनी वस्तुओं पर लगाए गए 30% शुल्क को और बढ़ाया जा सकता था। वहीं, चीन भी अमेरिकी वस्तुओं पर कड़े जवाबी टैक्स थोप सकता था। ऐसे में दोनों देशों के व्यापारिक संबंध पूरी तरह ठप होने की कगार पर थे।
इस कदम से दोनों देशों को कूटनीतिक बातचीत का एक और मौका मिला है। संभावना जताई जा रही है कि वर्ष के अंत तक अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक उच्चस्तरीय बैठक हो सकती है।
अमेरिकी उद्योग को राहत, लेकिन चुनौतियाँ कायम
अमेरिकी कंपनियों, खासतौर से वे जो चीन में व्यापार कर रही हैं, ने इस फैसले का स्वागत किया है। अमेरिका-चीन बिजनेस काउंसिल के अध्यक्ष सीन स्टीन ने इस विस्तार को बेहद जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि यह समय दोनों देशों को न केवल बाजार पहुंच बढ़ाने के लिए समाधान खोजने का मौका देगा, बल्कि दीर्घकालिक व्यापारिक योजनाएं तय करने में भी मदद करेगा।
स्टीन ने यह भी ज़ोर दिया कि चीन से फेंटानिल जैसे पदार्थों के निर्यात को लेकर एक ठोस समझौता ज़रूरी है ताकि अमेरिका में कृषि और ऊर्जा क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा फिर से बढ़ सके।
टैरिफ से त्रस्त वैश्विक व्यापार तंत्र
ट्रंप प्रशासन ने बीते वर्षों में व्यापार नीतियों के नाम पर कई देशों पर भारी शुल्क लगाए हैं। जापान और यूरोपीय संघ तक को 15% टैक्स की शर्तों को मानना पड़ा ताकि वे और अधिक कठोर नियमों से बच सकें। येल विश्वविद्यालय के बजट लैब के मुताबिक, अमेरिका का औसत टैरिफ अब बढ़कर 18.6% हो चुका है, जो 1933 के बाद सबसे अधिक है।
चीन का 'रेयर अर्थ' पलटवार
चीन ने भी अमेरिका पर दबाव बनाने की रणनीति अपनाई। उसने इलेक्ट्रिक व्हीकल और जेट इंजन जैसे अत्याधुनिक उत्पादों में इस्तेमाल होने वाले रेयर अर्थ मटीरियल की सप्लाई सीमित कर दी। इसके चलते अमेरिका को झुकाव दिखाना पड़ा।
जून में हुई एक अहम बैठक में अमेरिका ने कंप्यूटर चिप्स और एथेन जैसे तकनीकी उत्पादों पर निर्यात प्रतिबंधों को घटाने का वादा किया, जबकि चीन ने अमेरिका को अपने रेयर अर्थ संसाधनों तक अधिक पहुंच देने का आश्वासन दिया।
पूर्व अमेरिकी व्यापार अधिकारी क्लेयर रीड का मानना है कि अब अमेरिका को यह समझ आने लगा है कि वह पूरी तरह से दबदबा नहीं बना सकता।
दाव पर है वैश्विक आर्थिक स्थिरता
पिछले मई में, दोनों देशों ने भारी भरकम टैरिफ—जहां चीन पर 145% और अमेरिका पर 125% तक शुल्क लगाए गए थे—को घटाकर क्रमशः 10% और 30% किया। इस पहल से दुनिया भर के बाजारों में राहत की लहर दौड़ी थी। जिनेवा में हुई एक बैठक के बाद यह तय किया गया कि बातचीत जारी रखी जाएगी।
अब भी अटकी हैं प्रमुख समस्याएं
हालांकि असल विवाद अब भी कायम है। अमेरिका का आरोप है कि चीन बौद्धिक संपदा अधिकारों की सुरक्षा नहीं करता, अपने उद्योगों को भारी सब्सिडी देता है, और वैश्विक स्तर पर अनुचित प्रतिस्पर्धा करता है। पिछले वर्ष अमेरिका का चीन के साथ व्यापार घाटा 262 अरब डॉलर तक पहुंच गया था, जो इन मुद्दों की गंभीरता को रेखांकित करता है।
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