
Up Kiran, Digital Desk: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने वैश्विक मंच पर 'ग्लोबल साउथ' (Global South) के देशों के हितों की दमदार वकालत करते हुए एक अग्रणी भूमिका निभाई है। यह भारत की बढ़ती कूटनीतिक शक्ति और विकासशील देशों के साथ उसकी एकजुटता का प्रमाण है, जो एक अधिक न्यायसंगत और समावेशी विश्व व्यवस्था के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
'ग्लोबल साउथ' शब्द उन विकासशील देशों के समूह को संदर्भित करता है जो मुख्य रूप से एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में स्थित हैं। इन देशों की साझा चुनौतियाँ और आकांक्षाएँ होती हैं, और भारत लगातार उनके लिए एक मजबूत आवाज बनकर उभरा है।
पीएम मोदी ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों, जैसे जी20 (G20), संयुक्त राष्ट्र (UN) और ब्रिक्स (BRICS) में ग्लोबल साउथ के देशों की चिंताओं को प्रमुखता से उठाया है। उनका मानना है कि एक न्यायसंगत और समावेशी विश्व व्यवस्था के लिए इन देशों की आवाज सुनी जानी चाहिए और उनकी प्राथमिकताओं को महत्व दिया जाना चाहिए।
भारत ने हमेशा विकासशील देशों के सामने आने वाली समान चुनौतियों - जैसे जलवायु परिवर्तन, गरीबी उन्मूलन, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा पहुंच और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण - को उजागर किया है। पीएम मोदी ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि विकसित देशों को इन मुद्दों के समाधान में ग्लोबल साउथ का समर्थन करना चाहिए, जिसमें वित्तपोषण और क्षमता निर्माण शामिल है।
भारत ने सिर्फ बातें ही नहीं कीं, बल्कि समाधान-उन्मुख दृष्टिकोण भी अपनाया है। भारत ने अक्षय ऊर्जा, डिजिटल समावेशन और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में अपनी सफलता के मॉडल साझा किए हैं और दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South Cooperation) को बढ़ावा देने पर जोर दिया है। जी20 की अध्यक्षता के दौरान भी भारत ने 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य' की अवधारणा पर काम करते हुए ग्लोबल साउथ के एजेंडे को केंद्रीय भूमिका में रखा।
यह नेतृत्व भारत को वैश्विक स्तर पर एक सेतु (bridge) के रूप में स्थापित करता है, जो विकसित और विकासशील देशों के बीच संवाद को बढ़ावा देता है। पीएम मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में, भारत ग्लोबल साउथ के लिए केवल एक पैरोकार नहीं, बल्कि एक प्रेरक शक्ति बन गया है, जो एक अधिक न्यायपूर्ण और टिकाऊ वैश्विक भविष्य की दिशा में काम कर रहा है
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