Up kiran,Digital Desk : हम सब बचपन से सुनते आए हैं कि नवजात बच्चे के लिए मां का दूध सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि 'अमृत' होता है। डॉक्टर भी कसम देकर कहते हैं कि पहले 6 महीने तक बच्चे को मां के दूध के अलावा कुछ नहीं देना चाहिए क्योंकि यही उसकी इम्युनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) बनाता है। लेकिन क्या हो अगर इसी अमृत में कोई ऐसी चीज मिल जाए जो बच्चे की सेहत के लिए खतरा हो?
हाल ही में एक ऐसी खबर आई है जिसने डॉक्टरों और मांओं, दोनों की चिंता बढ़ा दी है। बिहार के कुछ इलाकों में हुए एक ताजा शोध में पाया गया है कि माताओं के दूध में 'यूरेनियम' (Uranium) की मौजूदगी है।
आखिर क्या कहती है यह डराने वाली रिपोर्ट?
एम्स दिल्ली (AIIMS) और कुछ अन्य बड़े संस्थानों के वैज्ञानिकों ने मिलकर बिहार के 6 जिलों में एक रिसर्च की। इसमें उन्होंने 17 से 35 साल की उम्र की 40 माताओं के दूध के सैंपल लिए। जब इन सैंपल्स की जांच हुई, तो नतीजे चौंकाने वाले थे। सभी 40 सैंपल्स में यूरेनियम के अंश पाए गए।
यह रिसर्च अक्तूबर 2021 से जुलाई 2024 के बीच की गई थी। विशेषज्ञों का मानना है कि इसका सीधा कनेक्शन बिहार के उस भूजल (Groundwater) से है, जिसे लोग पीते हैं। यानी जो पानी मां पी रही है, उसमें मौजूद केमिकल अब दूध के जरिए बच्चे तक पहुंच रहे हैं।
तो क्या मांएं दूध पिलाना बंद कर दें?
यह सवाल हर किसी के मन में आएगा। लेकिन एम्स के वरिष्ठ डॉक्टर अशोक शर्मा ने बहुत काम की बात कही है। उन्होंने माना कि 70% बच्चों में जोखिम के संकेत दिखे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मांएं डर जाएं। उन्होंने साफ कहा है कि "स्तनपान बंद करने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है।"
भले ही दूध में कुछ तत्व मिले हों, लेकिन इसके फायदे अभी भी जोखिम से कहीं ज्यादा हैं। बस हमें पानी और खान-पान पर ध्यान देने की जरूरत है।
यूरेनियम से नन्हे बच्चों को क्या नुकसान है?
यूरेनियम कोई साधारण तत्व नहीं है। अगर यह शरीर में ज्यादा चला जाए, तो यह सबसे पहले किडनी (गुर्दे) पर हमला करता है। छोटे बच्चों की किडनी बहुत नाजुक होती है। इसके अलावा, यह बच्चों के दिमाग के विकास (Cognitive ability) को धीमा कर सकता है। अगर यह कण हवा के जरिए शरीर में गए हैं, तो फेफड़ों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
पहले मिला था प्लास्टिक, अब यूरेनियम
प्रदूषण अब हमारे पर्यावरण से निकलकर हमारे शरीर के अंदर घर कर गया है। आपको याद दिला दें कि 2022 में इटली में एक स्टडी हुई थी, जिसमें वैज्ञानिकों ने पहली बार मां के दूध में माइक्रोप्लास्टिक (प्लास्टिक के बहुत महीन कण) ढूंढे थे।
शोधकर्ताओं ने तब 34 स्वस्थ माताओं के सैंपल लिए थे, जिनमें से 75% में प्लास्टिक मिला था। हम जो प्लास्टिक की बोतलों में पानी पीते हैं या पैक्ड खाना खाते हैं, वही जहर बनकर हमारे शरीर में लौट रहा है।
यह खबर डराने के लिए नहीं, बल्कि हमें जागरूक करने के लिए है। पानी के स्रोतों की सफाई और शुद्ध भोजन अब वक्त की सबसे बड़ी जरूरत बन गया है, ताकि हमारी आने वाली नस्लें सुरक्षित रह सकें।
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