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Up Kiran, Digital Desk: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही एनडीए ने अपनी चुनावी तैयारियां युद्धस्तर पर शुरू कर दी हैं। इस बार का फोकस है वो मतदाता जो बिहार में रहते नहीं, मगर बिहार को दिल से चाहते हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं उन तीन करोड़ से अधिक प्रवासी बिहारियों की जो देश के अलग-अलग हिस्सों में काम करते हैं और त्योहारों के मौके पर अपने गांव-घर लौटते हैं।

बीजेपी और एनडीए की यह रणनीति न सिर्फ स्मार्ट है, बल्कि गेमचेंजर साबित हो सकती है।

प्रवासी वोटरों पर क्यों है इतना फोकस

प्रवासी मतदाता, खासकर मजदूर और कामकाजी वर्ग के लोग आमतौर पर चुनावों में मतदान नहीं कर पाते क्योंकि वे अपने गृह राज्य से दूर रहते हैं। मगर दिवाली और छठ जैसे त्योहारों के समय ये बड़ी संख्या में घर लौटते हैं। यही वह खिड़की है, जिसे बीजेपी भुनाना चाहती है।

बीजेपी की रणनीति: संपर्क से समर्थन तक

हाल ही में पटना स्थित बीजेपी कार्यालय में एक अहम बैठक आयोजित हुई जिसमें प्रवासी वोटरों तक पहुंचने की रणनीति पर विस्तार से चर्चा की गई। इस बैठक में बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुग, दुष्यंत गौतम, और बिहार बीजेपी अध्यक्ष दिलीप जायसवाल शामिल थे।

बैठक में तय किया गया कि देश के 150 जिलों की पहचान की गई है, जहां प्रवासी बिहारी बड़ी संख्या में रहते हैं। बिहार के 150 नेताओं को प्रभारी बनाकर इन जिलों में भेजा जाएगा। ये प्रभारी प्रवासी बिहारियों से मिलकर उन्हें बिहार लौटकर मतदान करने के लिए प्रेरित करेंगे। इसका हिस्सा होगा एक विशेष अभियान'एक भारत, श्रेष्ठ भारत', जिससे भावनात्मक जुड़ाव भी सुनिश्चित किया जाएगा।

एनडीए में तालमेल: जेडीयू और बीजेपी एकजुट

एनडीए के भीतर के समीकरणों को भी दुरुस्त किया जा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल ही में बीजेपी के शीर्ष नेताओं से बैठक की। चर्चा विकास कार्यों की समीक्षा, रोजगार के अवसरों और सरकार की उपलब्धियों पर हुई। मगर असल मकसद थाएकजुटता का प्रदर्शन।

वरिष्ठ नेता प्रेम कुमार ने भी दो टूक कहा कि बैठक का एजेंडा केवल विकास था। मगर पार्टी के अंदरूनी सूत्र मानते हैं कि यह बैठक विपक्ष को यह दिखाने के लिए थी कि एनडीए अब भी मजबूत और संगठित है।

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