
Up Kiran, Digital Desk: तीसरे भारत-सिंगापुर मंत्रिस्तरीय गोलमेज (ISMR) की बैठक के मौके पर, सिंगापुर के राजदूत बिलाहारी काउसिकां ने वैश्विक कूटनीति और भारत के पड़ोसियों के साथ संबंधों को लेकर कई चौंकाने वाले बयान दिए हैं। काउसिकां ने अमेरिका की वैश्विक भूमिका पर बात करते हुए कहा कि अमेरिका "भरोसेमंद साथी नहीं है, लेकिन अपरिहार्य (indispensable) है।"
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हर देश को अमेरिका के साथ काम करने का रास्ता खोजना होगा, क्योंकि दुनिया में "सिर्फ एक अमेरिका है" और उसकी नीतियां हर चार साल में बदल सकती हैं। राजदूत ने कहा कि अमेरिका की विश्व में भूमिका एक 'मौलिक बदलाव' (Fundamental Shift) से गुजर रही है।
भारत के पड़ोसियों से रिश्ते: क्या है सिंगापुर की राय?
जब उनसे भारत के पड़ोसियों के साथ संबंधों के बारे में पूछा गया, तो सिंगापुर के राजदूत ने खुलकर अपनी राय रखी। उन्होंने कहा, "मुझे नहीं लगता कि भारत का बांग्लादेश के साथ संबंध केवल चीनी प्रभाव के कारण पीड़ित है।" काउसिकां ने आगे कहा, "आप (भारत) बांग्लादेश के प्रति बहुत अच्छे नहीं रहे हैं। भारत एक बड़ी शक्ति है और उसने समय-समय पर अपने पड़ोसियों के प्रति बहुत अच्छा व्यवहार नहीं किया है।" उन्होंने यह भी जोड़ा कि "एक छोटे देश के रूप में, मैं सभी बड़ी शक्तियों को एक तिरछी नजर से देखता हूं।"
क्या यह बयान भारत के लिए एक चेतावनी है?
राजदूत काउसिकां के ये बयान ऐसे समय में आए हैं जब भारत अपनी 'पड़ोसी प्रथम' (Neighbourhood First) नीति पर जोर दे रहा है। बांग्लादेश जैसे देशों के साथ भारत के संबंध ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में कुछ अनसुलझे मुद्दे भी उभरे हैं। काउसिकां की टिप्पणी, भले ही एक छोटे देश के नजरिए से कही गई हो, भारत के लिए अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों को मजबूत करने और अधिक संवेदनशील होने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
अमेरिका की बदलती भूमिका और विश्व व्यवस्था
अमेरिका की भूमिका में 'मौलिक बदलाव' का काउसिकां का बयान वैश्विक शक्ति संतुलन में हो रहे परिवर्तनों को भी दर्शाता है। विभिन्न देशों के लिए, अमेरिका के साथ अपने संबंधों को संतुलित करना एक जटिल कूटनीतिक चुनौती बनी हुई है, खासकर जब उसकी नीतियां बदलती रहती हैं। ऐसे में, भारत जैसे देशों के लिए अपनी विदेश नीति को लचीला और बहुआयामी रखना महत्वपूर्ण है।
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