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Kanwar Yatra 2024: सावन का महीना आने वाला है, जिसका इंतजार भोलेनाथ के भक्त साल भर करते हैं। इस महीने में भोलेनाथ के मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है और मंदिरों में बम-बम भोले के जयकारे गूंजते हैं। वहीं, इन दिनों कांवड़ यात्रा भी निकाली जाती है, जहां भक्त गंगा नदी में स्नान करने के बाद कांवड़ में गंगाजल लाते हैं और मंदिर में भोलेनाथ को अर्पित करते हैं। क्या आप जानते हैं कि इस यात्रा की शुरुआत सबसे पहले किसने की थी? भोपाल के ज्योतिष आचार्य पंडित योगेश चौरे ने इसकी उत्पत्ति के बारे में बताया।

हर साल सावन के दौरान देशभर में कांवड़ यात्रा निकाली जाती है। इस बार कांवड़ यात्रा 22 जुलाई से शुरू होकर 2 अगस्त को खत्म होगी।

पंडित के अनुसार कांवड़ यात्रा की शुरुआत ऋषि जमदग्नि के पुत्र भगवान परशुराम ने की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार वे गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लेकर निकले थे और सीधे उत्तर प्रदेश के पुरा पहुंचे थे, जहां उन्होंने भोलेनाथ का अभिषेक किया था। कहा जाता है कि इसी परंपरा का पालन करते हुए शिव भक्त सावन के महीने में कांवड़ यात्रा करते हैं और भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं।

कांवड़ यात्रा के बारे में एक और पौराणिक कथा है जिसके अनुसार कांवड़ यात्रा की शुरुआत त्रेता युग में हुई थी। कहा जाता है कि यह यात्रा सबसे पहले श्रवण कुमार ने की थी। जब उनके माता-पिता ने गंगा स्नान की इच्छा जताई तो उन्होंने उन्हें कांवड़ में बिठाया और यात्रा शुरू की। इसके बाद वे हरिद्वार पहुंचे और गंगा स्नान करके जल भी साथ लाए।

कांवड़ यात्रा चार तरह की होती है। आम कांवड़ यात्रा में भक्त गंतव्य तक पैदल चलकर जाते समय रास्ते में आराम कर सकते हैं। डाक कांवड़ यात्रा में भक्तों को नदी से जल लेने और भोलेनाथ का अभिषेक करने तक लगातार चलना पड़ता है। एक बार जब वे यात्रा शुरू करते हैं, तो वे जलाभिषेक करने के बाद ही इसे खत्म करते हैं। दंडी कांवड़ में भक्त को बम बम भोले का नारा लगाते हुए झुककर यात्रा करनी होती है। खड़ी कांवड़ में कई भक्त एक दूसरे का सहारा लेकर एक कांवड़ उठाते हैं।

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