_1842429765.jpg)
Up Kiran, Digital Desk: देश के राज्यों की आर्थिक सेहत को लेकर एक बड़ी और चिंताजनक खबर सामने आई है। भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में खुलासा किया है कि पिछले एक दशक में राज्यों पर कर्ज का बोझ तीन गुना से भी ज़्यादा बढ़ गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च 2014 में सभी राज्यों का कुल कर्ज 19.8 लाख करोड़ रुपये था, जो मार्च 2023 तक बढ़कर 59.6 लाख करोड़ रुपये के खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। यह आंकड़ा राज्यों की वित्तीय स्थिति को लेकर खतरे की घंटी बजा रहा है।
क्या कहती है CAG की रिपोर्ट?
यह रिपोर्ट सिर्फ कर्ज के बढ़ते आंकड़े ही नहीं बताती, बल्कि उन खतरनाक ट्रेंड्स की ओर भी इशारा करती है जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं हैं।
कर्ज लेकर चुका रहे पुराना कर्ज: CAG ने सबसे बड़ी चिंता इस बात पर जताई है कि कई राज्य अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा (लगभग 27.8%) नया कर्ज लेकर सिर्फ पुराना कर्ज और उसका ब्याज चुकाने में ही खर्च कर रहे हैं। इसका मतलब है कि विकास के कामों के लिए पैसा कम बच रहा है।
अनुत्पादक कामों में खर्च: रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि राज्य जो कर्ज ले रहे हैं, उसका इस्तेमाल सड़क, स्कूल या अस्पताल जैसे विकास के कामों में कम, और मुफ्त की योजनाओं या सब्सिडी जैसी चीजों पर ज़्यादा हो रहा है। इससे राज्य की कमाई नहीं बढ़ रही, बल्कि कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है।
ब्याज का बढ़ता बोझ: 2022-23 में, राज्यों ने अपने कुल राजस्व का 6.4% हिस्सा सिर्फ कर्ज का ब्याज चुकाने में खर्च कर दिया, जो कि एक बहुत बड़ा अमाउंट है।
क्यों है यह चिंता की बात?
राज्यों पर बढ़ता यह कर्ज देश के विकास की रफ्तार को धीमा कर सकता है। अगर राज्य अपनी कमाई का ज़्यादातर हिस्सा सिर्फ कर्ज और ब्याज चुकाने में ही खर्च कर देंगे, तो उनके पास नई सड़कें बनाने, नए स्कूल-कॉलेज खोलने या स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के लिए पैसा ही नहीं बचेगा।