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उत्तराखंड में हाल ही में संपन्न त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राज्य की ग्रामीण जनता का रुझान किस दिशा में जा रहा है। इस बार का मतदान न केवल प्रत्याशियों की जीत-हार से जुड़ा रहा, बल्कि यह इस बात का भी संकेतक बना कि स्थानीय स्तर पर लोगों को किन योजनाओं और नेतृत्व पर भरोसा है।
ग्रामीण जनता ने दिखाई स्थिर नेतृत्व में आस्था
जिला पंचायतों की 358 सीटों में से अब तक के नतीजों के मुताबिक भाजपा समर्थकों और उससे सहानुभूति रखने वाले निर्दलीय उम्मीदवारों ने मिलकर 200 से ज्यादा सीटों पर सफलता दर्ज की है। इनमें से 125 सीटों पर भाजपा समर्थित प्रत्याशी सीधे तौर पर विजयी हुए हैं, जबकि 75 से अधिक स्वतंत्र उम्मीदवार ऐसे हैं जिन्होंने या तो चुनाव पूर्व भाजपा का समर्थन किया या परिणाम आने के बाद पार्टी के प्रति निष्ठा जताई।
कांग्रेस ने कई ज़िलों में उपस्थिति बनाए रखी, लेकिन पिछड़ गई
जहाँ एक ओर कांग्रेस 83 सीटों पर जीत दर्ज कर सकी, वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों ने कुल 150 सीटों पर कब्जा किया। हालांकि, कई क्षेत्रों में कांग्रेस अपनी पारंपरिक पकड़ बनाए रखने में सफल रही, लेकिन राज्य के अधिकतर ग्रामीण इलाकों में भाजपा की पहुंच और संगठनात्मक जमीनी मजबूती ने उसे पीछे छोड़ दिया।
लोकतंत्र की असली परीक्षा गाँवों में
ग्राम पंचायत, ब्लॉक और ज़िला स्तर के इन चुनावों को आमतौर पर स्थानीय मुद्दों और प्रशासनिक कार्यशैली का प्रतिबिंब माना जाता है। यही कारण है कि लोग पार्टी चिन्हों के बिना भी प्रत्याशियों की नीतियों, व्यक्तिगत छवि और उनके पिछले कार्यों के आधार पर फैसला करते हैं।
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