जोड़ों का दर्द, अकड़न और सूजन - आर्थराइटिस (गठिया) की यह पीड़ा किसी को भी हो सकती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह बीमारी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं पर कहीं ज्यादा कहर बरपाती है? यह एक ऐसी सच्चाई है जिसके बारे में बहुत कम बात होती है. महिलाएं न सिर्फ इस बीमारी से ज्यादा पीड़ित होती हैं, बल्कि उन्हें सामाजिक और भावनात्मक स्तर पर भी एक बड़ी लड़ाई लड़नी पड़ती है.
क्यों हैं महिलाएं ज्यादा शिकार: आर्थराइटिस के 100 से भी ज्यादा प्रकार हैं, और उनमें से सबसे आम, जैसे रुमेटीइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis) और ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis), महिलाओं को असंगत रूप से प्रभावित करते हैं. इसके पीछे कई वैज्ञानिक और सामाजिक कारण हैं:
हार्मोन का खेल: महिलाओं के शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव, खासकर एस्ट्रोजन, जोड़ों की सेहत में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं. पीरियड्स, प्रेग्नेंसी और मेनोपॉज के दौरान होने वाले हार्मोनल उतार-चढ़ाव महिलाओं को इस बीमारी के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनाते हैं.
जेनेटिक बनावट: कुछ रिसर्च बताती हैं कि महिलाओं की जेनेटिक बनावट भी उन्हें ऑटोइम्यून बीमारियों, जैसे रुमेटीइड आर्थराइटिस, के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकती है.
चोटों का अधिक जोखिम: महिलाओं के घुटनों और कूल्हों की बनावट उन्हें कुछ खास तरह की चोटों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है, जो बाद में ऑस्टियोआर्थराइटिस का कारण बन सकती हैं.
दर्द से परे, एक अनकही कहानी
महिलाओं के लिए आर्थराइटिस सिर्फ एक शारीरिक पीड़ा नहीं है. यह उनके जीवन के हर पहलू पर असर डालती है:
दोहरी जिम्मेदारी का बोझ: एक महिला, जिसे अक्सर घर और बाहर, दोनों की जिम्मेदारी संभालनी होती है, उसके लिए इस दर्द के साथ रोजमर्रा के काम करना भी एक जंग बन जाता है. रसोई में काम करने से लेकर बच्चों की देखभाल तक, हर काम एक चुनौती लगता है.
मानसिक स्वास्थ्य पर असर: लगातार दर्द और शारीरिक सीमाओं के कारण महिलाएं अक्सर डिप्रेशन और एंग्जायटी का शिकार हो जाती हैं. वे समाज से कटने लगती हैं और अकेलापन महसूस करती हैं.
अनदेखी और गलत निदान: कई बार, महिलाएं अपने दर्द को यह सोचकर नजरअंदाज करती रहती हैं कि यह उम्र बढ़ने या थकान का नतीजा है. जब तक वे डॉक्टर के पास पहुंचती हैं, तब तक बीमारी काफी बढ़ चुकी होती है.
क्या करने की जरूरत है?
इस "असमान बोझ" को समझने और संबोधित करने की तत्काल आवश्यकता है. महिलाओं को अपने जोड़ों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए. हल्का सा भी दर्द या अकड़न महसूस होने पर उसे नजरअंदाज न करें और तुरंत डॉक्टर से सलाह लें. समाज को भी महिलाओं के इस दर्द के प्रति अधिक संवेदनशील होने और उन्हें समर्थन देने की जरूरत है.



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