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क्या आपके साथ भी ऐसा होता है? घड़ी में रात के 9 बज चुके हैं, लेकिन आप अभी भी ऑफिस में लैपटॉप पर झुके हुए हैं। छुट्टी वाले दिन भी आपका फोन काम के मैसेज और ईमेल से बजता रहता है। अगर हां, तो रुकिए और सोचिए। जिसे आप 'मेहनत' और 'लगन' का तमगा समझ रहे हैं, असल में वो आपकी सेहत, खुशी और प्रोडक्टिविटी का सबसे बड़ा दुश्मन है।

लंबे समय से हमें यह सिखाया गया है कि सफलता का रास्ता लंबे घंटों की कड़ी मेहनत से होकर जाता है। इस सोच को "हसल कल्चर" (Hustle Culture) का नाम दिया गया। लेकिन अब दुनिया भर के एक्सपर्ट्स और कंपनियां यह मानने लगी हैं कि यह सोच पूरी तरह से गलत और पुरानी हो चुकी है।

ज्यादा काम करने के छुपे हुए नुकसान

क्रिएटिविटी खत्म हो जाती है: जब आपका दिमाग 24 घंटे सिर्फ काम के बारे में सोचता है, तो उसके पास नए और créative ideas सोचने की ऊर्जा ही नहीं बचती। एक थका हुआ दिमाग कभी कुछ नया नहीं सोच सकता।

आपकी सेहत दांव पर लगती है: लगातार ज्यादा काम करने से तनाव (stress), चिंता (anxiety) और बर्नआउट (burnout) होता है। इसका सीधा असर आपकी नींद, पाचन और दिल की सेहत पर पड़ता है।

प्रोडक्टिविटी घटती है, बढ़ती नहीं: यह एक मिथक है कि ज्यादा घंटे काम करने से ज्यादा काम होता है। रिसर्च बताती है कि एक सीमा के बाद, आपकी काम करने की क्षमता घटने लगती है और आपसे गलतियां ज्यादा होने लगती हैं। 8 घंटे का काम आप 12 घंटे में भी पूरा नहीं कर पाते।

रिश्तों पर असर पड़ता है: जब आप ऑफिस को ही अपनी जिंदगी बना लेते हैं, तो आप अपने परिवार, दोस्तों और खुद को समय नहीं दे पाते, जिससे आपके रिश्ते कमजोर होने लगते हैं।

तो इसका समाधान क्या है?अब समय आ गया है कि कंपनियां और कर्मचारी, दोनों ही इस सोच को बदलें।

काम के घंटों पर नहीं, नतीजों पर ध्यान दें: मैनेजरों को यह देखना चाहिए कि काम कितना अच्छा हुआ, न कि यह कि कर्मचारी कितनी देर ऑफिस में रुका।

ब्रेक लेना जरूरी है: काम के बीच में छोटे-छोटे ब्रेक लेना आपके दिमाग को रिचार्ज करता है और आपका फोकस बढ़ाता है।

छुट्टी का सम्मान करें: काम के घंटों के बाद या छुट्टी वाले दिन कर्मचारी को परेशान न करने की पॉलिसी होनी चाहिए।

याद रखिए, आप एक इंसान हैं, मशीन नहीं। एक खुश और स्वस्थ कर्मचारी ही एक अच्छा और प्रोडक्टिव कर्मचारी हो सकता है। इसलिए, 'Always On' रहने की आदत छोड़िए और अपनी जिंदगी को भी थोड़ी अहमियत दीजिए।