img

Up Kiran, Digital Desk: कर्नाटक की सदियों पुरानी और जीवंत पारंपरिक रंगमंच कला याक्षगान आज आधुनिकता की तेज दौड़ में कई नई चुनौतियों का सामना कर रही है। यह अनूठा कला रूप, जो अपनी रंगीन वेशभूषा, भव्य मेकअप, सशक्त संगीत और पौराणिक कथाओं पर आधारित कहानियों के लिए जाना जाता है, अब बदलते समय के साथ अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है।

पहले याक्षगान ग्रामीण क्षेत्रों और मंदिरों से जुड़ा था और समुदाय का एक अभिन्न हिस्सा था। लेकिन आज, खासकर बेंगलुरु जैसे बड़े शहरी केंद्रों में, इसे दर्शकों को आकर्षित करने में मुश्किल हो रही है। आधुनिक मनोरंजन के ढेरों विकल्प - जैसे सिनेमा, टेलीविजन, इंटरनेट और सोशल मीडिया - ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है, जिससे पारंपरिक कलाओं के लिए दर्शक जुटाना कठिन हो गया है।

इस स्थिति का सीधा असर कलाकारों और मंडलियों पर पड़ रहा है। उन्हें पर्याप्त प्रदर्शन के मौके नहीं मिल पा रहे हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति प्रभावित हो रही है। युवा पीढ़ी में भी इस कला रूप को सीखने और अपनाने में रुचि कम हो रही है, जो इसके भविष्य के लिए चिंता का विषय है।

याक्षगान के सामने एक और बड़ी चुनौती यह है कि परंपरा के मूल स्वरूप को कैसे बनाए रखा जाए, जबकि दर्शकों की बदलती पसंद के अनुसार कुछ अनुकूलन भी किए जाएं। कला के शुद्ध रूप को बनाए रखना महत्वपूर्ण है, लेकिन साथ ही इसे नए दर्शकों से जोड़ने के लिए कुछ नए प्रयोगों की आवश्यकता महसूस की जा रही है। यह परंपरा और आधुनिकता के बीच एक नाजुक संतुलन बनाने जैसा है।

 याक्षगान को संरक्षित करने और उसे पुनर्जीवित करने के प्रयास जारी हैं। कलाकार और संगठन इस कला को शहरी दर्शकों तक पहुँचाने और नई पीढ़ी को इससे परिचित कराने के लिए काम कर रहे हैं। हालांकि, इस धरोहर को जीवित रखने के लिए सरकारी समर्थन और जनभागीदारी की आवश्यकता है। याक्षगान केवल एक प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह कर्नाटक की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, जिसे बचाना हम सभी की जिम्मेदारी है।

--Advertisement--