img

Up Kiran, Digital Desk: न्यायपालिका ने एक बार फिर नागरिक अधिकारों की रक्षा करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। उत्तर प्रदेश की गाजियाबाद जेल में एक कैदी को जमानत आदेश मिलने के बावजूद करीब चार हफ्तों तक हिरासत में रखा गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए इसे एक “सिस्टम फेलियर” करार दिया और राज्य सरकार को पांच लाख रुपये का हर्जाना देने का आदेश दिया।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ  जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एनके सिंह ने साफ तौर पर कहा कि तकनीकी या दफ्तर की त्रुटियों की आड़ में किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि “यह महज लिपिकीय भूल नहीं, बल्कि पूरी प्रणाली की विफलता है।”

जमानत के बावजूद कैद, कहाँ चूकी व्यवस्था

मामले के अनुसार, आरोपी को अदालत से जमानत मिल चुकी थी। जमानत आदेश में अपराध और संबंधित धाराओं की पूरी जानकारी दी गई थी। लेकिन सिर्फ एक उपधारा का उल्लेख आदेश में नहीं था, इसी आधार पर जेल प्रशासन ने रिहाई में टालमटोल किया।

कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि कोई भी व्यक्ति तकनीकी कमियों की वजह से अपनी आज़ादी से वंचित नहीं रह सकता। अदालत ने कहा, “जब सारी जानकारी मौजूद है और आदेश स्पष्ट है, तब छोटी-मोटी प्रक्रियात्मक गलतियों का हवाला देकर किसी की रिहाई टालना न सिर्फ अन्याय है, बल्कि संविधान के मूल सिद्धांतों का भी उल्लंघन है।”

सुनवाई में प्रशासन कटघरे में

जेल अधीक्षक को कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया गया, जबकि जेल विभाग के उप-महानिरीक्षक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए सुनवाई में शामिल हुए। इस दौरान राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने जेल प्रशासन का पक्ष रखने की कोशिश की, लेकिन अदालत ने उनके तर्कों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मामला केवल एक ‘मानव त्रुटि’ नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि पूरी व्यवस्था कैसे फेल हो सकती है।

संविधान की आत्मा के खिलाफ

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी दोहराया कि आज़ादी हमारे संविधान की आत्मा है। इसे नौकरशाही की लापरवाही या गैर-जिम्मेदाराना रवैये की बलि नहीं चढ़ाया जा सकता।

--Advertisement--