एशिया में इन दिनों एक नया पावर गेम खेला जा रहा है और इसके केंद्र में भारत है। नाटो अब एशिया की तरफ ध्यान केंद्रित कर रहा है। नाटो देश चीन पर लगाम कसने के लिए एशिया की तरफ रुख कर रहे हैं। इसके लिए नाटो जापान में अपना ऑफिस भी खोल रहा है। मगर नाटो की नजर भारत पर भी है। जुलाई में पीएम मोदी के अमेरिकी दौरे से पहले भारत को नाटो प्लस का सदस्य बनने का ऑफर मिला है। नाटो प्लस चीन के खिलाफ बनाया गया है। आपको बता दें कि नाटो में 31 देश शामिल हैं, जबकि नाटो प्लस में पांच देश हैं, जिनमें ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, इजराइल और दक्षिण कोरिया शामिल हैं।
अब भारत को इसी नाटो प्लस का सदस्य बनाने का लालच दिया जा रहा है। मगर भारत ने पहली बार नाटो सदस्यता पर एक बड़ा ऐलान कर दिया है। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बयान दिया है कि भारत नाटो प्लस का मेंबर नहीं बनेगा। एस जयशंकर ने कहा कि यह अच्छा है कि वह हमें किसी संगठन में भागीदार बनाना चाहते हैं, मगर यह भारत की पॉलिसी नहीं है।
31 देशों के टेंशन बढ़ी
नाटो में शामिल होना भारत के लिए ठीक नहीं है। एस जयशंकर के इस ऐलान से दुनिया में हंगामा हो गया है। भारत के इस फैसले के बाद आज नाटो के 31 देश परेशान होंगे तो वही रूस में जश्न मन रहा होगा। हम आपको बताएंगे कि भारत ने ऐसा फैसला क्यों लिया है और क्या नाटो में शामिल होकर भारत ने सही किया। आइए यह सब आपको बताते हैं।
इस वजह से नाटो में शामिल नहीं होना चाहता भारत
भारत जानता है कि नाटो मनुष्यता के इतिहास में सबसे ताकतवर संगठन है। मगर भारत जानता है कि नाटो के साथ संबंध बनाए रखने में समझदारी है। उसमें शामिल होने में नहीं। पश्चिमी ताकतें चीन पर लगाम लगाने के लिए भारत को एक साधन की तरह इस्तेमाल करना चाहती हैं। नाटो अपने सहयोगियों का इस्तेमाल करके उन्हें अकेला छोड़ देने के लिए बदनाम है। इसीलिए भारत नाटो से दूरी बनाए रखना चाहता है। भारत नाटो के साथ रिश्ता तो रखेगा, मगर उसमें शामिल नहीं होगा। भारत अगर नाटो में शामिल हो जाता तो रूस के साथ संबंध टूटने की कगार पर पहुंच सकते थे। भारत पश्चिमी देशों और रूस सभी को साथ लेकर चलना चाहता है।
हिंदुस्तान किसी गुट में शामिल नहीं होना चाहता। तभी तो भारत क्वॉड का भी सदस्य है और शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन का भी। क्वॉड चीन के खिलाफ है तो एससीओ चीन का ही संगठन है। भारत को जी सेवेन समिट में भी बुलाया जाता है और भारत ब्रिक्स में भी शामिल है। जी सेवेन में अमेरिका और पश्चिमी देश हैं जबकि ब्रिक्स में उनके कट्टर दुश्मन रूस और चीन है।
यानी भारत एक ही समय पर एक दूसरे के विरोधी संगठनों में मौजूद है। भारत एक बहुध्रुवीय विश्व बनाना चाहता है यानी मल्टी पोलर वर्ल्ड। जबकि नाटो इसकी इजाजत नहीं देता। नाटो अभी भी शीत युद्ध के दौर वाली पुरानी मानसिकता में फंसा हुआ है। नाटो का मानना है कि या तो आप हमारे साथ हैं, नहीं तो आप हमारे खिलाफ हैं। इसीलिए भारत इस संगठन में शामिल नहीं हो रहा है।
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