Up Kiran, Digital Desk: दोस्तों, राजनीति की दुनिया में कब क्या हो जाए, कहना मुश्किल है! अभी केरल की राजनीति से एक ऐसी ही बड़ी खबर सामने आ रही है, जिसने सबकी निगाहें अपनी ओर खींच ली हैं. दरअसल, केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से एक अजीब सी गुहार लगाई है – उनका कहना है कि आने वाले 'विशेष मतदाता सूची संशोधन' (Special Electoral Roll Revision) को फिलहाल रोक दिया जाए या उसकी तारीखें आगे बढ़ा दी जाएँ. ऐसा इसलिए, क्योंकि जल्द ही राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव (Local Body Elections) होने वाले हैं.
अब सवाल यह उठता है कि केरल सरकार ऐसा क्यों चाहती है?
क्या है केरल सरकार की दलील?
केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका में साफ-साफ कहा है कि राज्य में स्थानीय निकायों के चुनाव होने वाले हैं, और अगर इसी बीच 'विशेष मतदाता सूची संशोधन' का काम शुरू किया जाता है, तो इससे पूरी चुनावी प्रक्रिया में बहुत ज़्यादा अड़चनें आ सकती हैं.
- भ्रम और परेशानी: उनका मानना है कि दो अलग-अलग चुनावी प्रक्रियाएँ (एक विधानसभा/संसदीय चुनावों के लिए, और दूसरी स्थानीय चुनावों के लिए) एक साथ चलाने से लोगों में बहुत भ्रम फैलेगा. वोटर समझ ही नहीं पाएंगे कि कौन सी लिस्ट उनके लिए मान्य है और कौन सी नहीं.
- अनावश्यक बाधा: इसके अलावा, इन दोनों कामों को एक ही समय में करना प्रशासनिक तौर पर भी बहुत मुश्किल होगा. इसमें न सिर्फ़ संसाधन ज़्यादा लगेंगे, बल्कि काम की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी, जिसका सीधा असर चुनावी पारदर्शिता पर पड़ सकता है.
- निष्पक्ष चुनाव पर असर: सरकार को डर है कि अगर मतदाता सूचियों में संशोधन और स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ हुए, तो शायद निष्पक्ष और सही तरीके से चुनाव कराना मुश्किल हो जाए. इससे नतीजों पर भी सवाल उठ सकते हैं.
क्या स्थानीय चुनाव टलेंगे या फिर से बनेंगी लिस्ट?
अभी तक सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं सुनाया है. अगर कोर्ट केरल सरकार की अपील मान लेता है, तो 'विशेष मतदाता सूची संशोधन' की प्रक्रिया टल सकती है, और स्थानीय निकाय चुनाव पुराने वोटर लिस्ट के आधार पर ही या बिना किसी बाहरी दबाव के आसानी से हो सकते हैं. लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट सरकार की अपील खारिज कर देता है, तो केरल में एक साथ दो बड़ी चुनावी प्रक्रियाएँ चल रही होंगी, जो निश्चित तौर पर एक बड़ी चुनौती होगी.
यह देखना दिलचस्प होगा कि देश की सर्वोच्च अदालत इस पेचीदा मामले पर क्या फैसला देती है. यह फैसला न सिर्फ़ केरल की राजनीति पर, बल्कि शायद पूरे देश की चुनावी प्रक्रियाओं पर एक मिसाल कायम कर सकता है. आम नागरिकों के तौर पर हमें उम्मीद है कि जो भी फैसला हो, वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया और लोगों के मतदान के अधिकार के लिए सबसे अच्छा हो.
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