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देहरादून। एक तरफ उत्तराखंड में चारों तरफ भारी बारिश ने तबाही मचा रखी है। वहीं दूसरी तरफ पवित्र केदारनाथ धाम (Kedarnath Dham) मंदिर के आसपास के पहाड़ों से गुरुवार शाम 6ः30 बजे भारी हिमस्खलन हुआ। इस वाकये का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वीडियो में आप देख सकते हैं कि मंदिर के पीछे स्थित पहाड़ियों से बर्फ तेजी से नीचे की तरफ आ रही है और देखते ही देखते भूरा पहाड़ बर्फ की सफेद चादर में लिपट जाता है।

आपको बता दें कि हिमस्खलन की चपेट में आने वाले इलाके को चोराबाड़ी ग्लेशियर कैचमेंट एरिया के नाम से जाना जाता है। यह स्थान केदारनाथ (Kedarnath Dham) मंदिर परिसर से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हालांकि इस हिमस्खलन में किसी भी तरह के जान-माल के नुकसान की कोई खबर नहीं है। अधिकारी भी स्थिति पर पैनी नजर बनाये हुए हैं। बता दें कि केदारनाथ (Kedarnath Dham)  घाटी में बीते कुछ दिनों से मौसम काफी खराब है। यहां तेज बारिश और बर्फबारी भी हो रही है जिससे मौसम भी काफी ठंडा हो गया है।

बताया जा रहा है कि यह वही हिमालय की हिमाच्छादित झील है जो साल 2013 में उफान पर थी और उत्तराखंड में सबसे विनाशकारी बाढ़ की वजह बनी थी। बता दें कि जून 2013 में उत्तराखंड में असामान्य बारिश हुई थी, जिससे चोराबाड़ी ग्लेशियर पिघल गया और मंदाकिनी नदी के जलस्तर ने विनाशकारी रूप धारण कर लिया था। इस भयावह बाढ़ ने उस वक्त उत्तराखंड के एक बड़े हिस्से को प्रभावित किया था। इस बाढ़ ने केदारनाथ घाटी में हजारों लोगों की जान ले ली थी।(Kedarnath Dham)

दिल दहला देने वाली इस प्राकृतिक आपदा में करीब 5,000 से अधिक लोग काल के गाल में समा गए थे और केदारनाथ मंदिर भी परिसर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था, हालांकि, मुख्य मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था क्योंकि एक विशालकाय चट्टान मंदिर के ठीक पीछे आकर टिक गई थी, जिससे पानी की धार बंट गई और मंदिर क्षतिग्रस्त होने से बच गया था। एक्सपर्ट्स का कहना है कि हिमालय में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लडिंग (GLOF) का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। (Kedarnath Dham)

बीते कुछ वर्षों में कई जीएलओएफ हिमालयी क्षेत्रों में फ्लैश फ्लड़ की वजह बने हैं, जिससे बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा है। वहीं हजारों लोगों को अपनी जाना भी गंवानी पड़ी। हाल के अध्ययनों में पता चला है कि हिमालयी क्षेत्र के अधिकांश ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के साथ तेजी से पिघल रहे हैं। अध्ययनों के मुताबिक साल 1935 से 1996 के बीच औसत हिमनदों के पीछे हटने की दर 20 मीटर प्रति वर्ष थी जो उसके बाद बढ़कर 38 मीटर प्रति वर्ष हो गई है। अध्ययनों में ये भी सामने आया है कि पिछले एक दशक में गंगोत्री के लगभग 300 मीटर पीछे हटने के साथ-साथ हिमनदों के गलन में तेजी आई है।(Kedarnath Dham)

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