Up kiran,Digital Desk : दोस्तों, आज जहां पूरा भारत चाँद और मंगल ग्रह तक पहुंच रहा है, बड़े शहरों में गगनचुंबी इमारतें बन रही हैं, वहीं हमारे देश में एक ऐसा गाँव भी है जहाँ लोग आज भी 100 साल पुरानी ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं। कल्पना कीजिये—चारों तरफ पानी, जंगल में बाघों की दहाड़ और आने-जाने का एकमात्र सहारा एक छोटी सी नाव, जो मगरमच्छों से भरी नदी में तैरती है।
यह कोई फिल्मी सीन नहीं है। यह उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के 'भरथापुर' (Bharthapur) गाँव की कड़वी सच्चाई है। लेकिन अच्छी खबर यह है कि यहाँ के 600 लोगों की ज़िंदगी अब हमेशा के लिए बदलने वाली है।
योगी सरकार का बड़ा फैसला: अब नई जगह, नई सुबह
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक ऐसा फैसला लिया, जिसकी माँग यह गाँव पिछले 15 सालों से कर रहा था। हाल ही में एक दर्दनाक नाव हादसे में यहाँ के 5 लोगों की मौत हो गई, जिसके बाद सीएम योगी ने आदेश दिया कि एक महीने के अंदर इस पूरे गाँव को यहां से हटाकर सुरक्षित जगह (सेमराहना गांव) पर बसाया जाए।
इसके लिए 21.55 करोड़ रुपये भी पास कर दिए गए हैं। यानी अब इन लोगों को बिजली, पक्का घर, सड़क और बिना डर के जीने का हक मिलेगा।
भरथापुर की रोंगटे खड़े करने वाली कहानी
आप शायद यकीन न करें, लेकिन भरथापुर पहुँचने के लिए बहराइच मुख्यालय से 130 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। रास्ता इतना भयानक है कि पहले 40 किमी घने जंगल (कतरनियाघाट वाइल्डलाइफ सेंचुरी) से गुजरना पड़ता है। फिर आती है 'घाघरा नदी', जहाँ मगरमच्छ और घड़ियाल धूप सेंकते हुए नज़र आ जाएंगे।
इस गाँव के लोग कहते हैं, "हमें याद नहीं कि हम यहां कब बसे थे।" यह बस्ती तीन तरफ से पानी से घिरी है। नेपाल से निकलने वाली कौड़ियाला और गिरवा नदियाँ इसे घेरती हैं। गाँव में घुसते ही ऐसा लगता है जैसे वक़्त ठहर गया हो। कच्चे मकान, पगडंडियाँ और बस एक सरकारी प्राइमरी स्कूल।
यहाँ कोई बीमार पड़े, तो राम भरोसे...
इस गाँव में न तो कोई डिस्पेंसरी है और न ही कोई डॉक्टर। सबसे नजदीकी अस्पताल बहराइच में है। रात हो गई तो सोलर लाइट ही सहारा है क्योंकि यहाँ बिजली के खंभे नहीं हैं। उमा देवी, जिनके पति की मौत पिछले महीने नाव पलटने से हुई, बताती हैं— "हम सूरज डूबने के बाद गाँव से बाहर जाने की सोच भी नहीं सकते। नदी में मगरमच्छ हैं और रास्ते में जंगली जानवर। हम पिंजरे में बंद पक्षियों की तरह हैं।"
शिक्षा के नाम पर सिर्फ 5वीं कक्षा
बच्चों की पढ़ाई यहाँ सबसे बड़ी चुनौती है। गाँव में एक ही स्कूल है और वो भी सिर्फ 5वीं तक। इसके बाद अगर बच्चे को आगे पढ़ाना है, तो माँ-बाप को उसे शहर भेजना पड़ता है या रिश्तेदारों के पास छोड़ना पड़ता है। टीचर विनोद कुमार और बेगराज सिंह हर रोज अपनी जान हथेली पर रखकर यहाँ पढ़ाने आते हैं। उन्हें अपनी बाइक नाव पर लादकर नदी पार करनी पड़ती है। कई बार उनका सामना हाथियों से भी हो चुका है।
न पुलिस, न कानून, अपना फैसला खुद!
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस गाँव में कभी पुलिस नहीं आती। लोग अपने झगड़े खुद सुलझाते हैं। एक निवासी ने बताया, "पुलिस को पता है कि वो यहाँ आ नहीं पाएंगे, इसलिए हम प्रधान के साथ बैठकर मामले निपटा लेते हैं।" रात को बाघ और हाथियों के डर से लोग अपनी-अपनी बारी लगाकर पहरा देते हैं और पटाखे जलाकर जानवरों को भगाते हैं।
अब बदल रही है किस्मत
लेकिन, कहते हैं न कि "अंधेरे के बाद ही सवेरा होता है।" सीएम योगी के नए प्लान के मुताबिक, हर परिवार को नई जगह पर जमीन का टुकड़ा, घर बनाने के लिए पैसा और खेती के लिए 2.5 बीघा जमीन दी जाएगी। वन विभाग भी अपनी तरफ से 15 लाख रुपये मुआवजे की पेशकश कर रहा है।
भरथापुर के लोगों के लिए यह सिर्फ़ एक विस्थापन नहीं, बल्कि नरक से निकलकर एक नई ज़िंदगी की शुरुआत है। उम्मीद है कि जल्द ही इन बच्चों के हाथ में भी किताबों के साथ-साथ इंटरनेट और सुनहरे भविष्य की चाबी होगी।
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