आखिर श्मशान घाट में ही तंत्र क्रिया क्यों की जाती है? जानिए रोचक जानकारी

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नई दिल्ली: तंत्र क्रिया का नाम सुनते ही मन में अचानक श्मशान की एक तस्वीर उभर आती है। जलती चिता के सामने बैठा तांत्रिक, अँधेरी रात और मीलों तक फैला सन्नाटा। आखिर तंत्र की ज्यादातर क्रियाएं श्मशान में ही क्यों की जाती हैं। अगर आपके भी मन में ये सारे सवाल हैं तो आइए जानते हैं श्मशान घाट में क्यों की जाती हैं ये साधनाएं.

दरअसल, श्मशान वह जगह है जहां के वातावरण में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की शक्तियां होती हैं। जहां कहीं भी मुश्किल हो लेकिन नकारात्मक को सकारात्मक ऊर्जा में बदला जा सकता है। तंत्र क्रिया सभी प्रकार के श्मशान घाटों में नहीं हो सकती। इसकी सिद्धि के लिए एक विशेष श्मशान का होना आवश्यक है। ऐसे श्मशान जिनके क्षेत्र में कोई नदी हो तथा कोई अन्य सिद्ध मंदिर हो, उसके क्षेत्र में होना चाहिए।

तांत्रिक ऐसे श्मशान घाटों में अभ्यास करना पसंद करते हैं जहां रोजाना 2-4 शव जलाए जाते हैं। श्मशान नदी
जल के किनारे होना आवश्यक है क्योंकि जल सृष्टि का प्रतीक है, पवित्र भी है और ब्रह्म भी माना जाता है। नदी के किनारे होने से वहां सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है, जिससे रचनात्मकता बढ़ती है। श्मशान घाट विनाश का प्रतीक है। जहां नकारात्मक ऊर्जा का बोलबाला है।

इस अनिष्ट शक्ति के प्रभाव से स्वयं को बचाने के लिए तांत्रिक ऐसे श्मशान घाटों में साधना करना पसंद करते हैं । पास में मंदिर होने से भी अनिष्ट शक्तियों का प्रभाव कम होता है और आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है । तांत्रिक इन दो कारणों से इस नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक में बदल देते हैं। इन साधनाओं से ही यह चमत्कार संभव है। इसलिए ये साधनाएं श्मशान घाट में की जाती हैं।

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