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धर्म डेस्क। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नागपंचमी के रूप में मानाया जाता है। इस वर्ष नौ अगस्त को नागपंचमी का पर्व है। राजस्थान, ओडिशा, बिहार और बंगाल समेत पूरी हिंदी पट्टी में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। जगह-जगह नागों को दूध लावा चढ़ाया जाता है। सपेरे नागों को टोकरी में लेकर घूमते हैं और घर-घर जाते हैं। लोग उन्‍हें श्रद्धा से दूध पिलाते हैं और लावा चढ़ाते हैं। नाग देवता को नागपंचमी के दिन दूध पिलाने के पीछे एक पौराणिक कथा और कई मान्‍यताएं हैं।

पुराणों के अनुसार नागपंचमी के दिन सांप को दूध पिलाने से सर्पदंश का भय दूर होता है और सर्प देवता का आशीर्वाद प्राप्‍त होता है। इस संबंध में भविष्‍य पुराण में एक कथा है। कथा इस प्रकार है - एक बार पांडवों के वंशज राजा जनमेजय ने नाग यज्ञ क‌िया।  इस यज्ञ में नागों की अनेक प्रजातियां भस्‍म हो गई। तक्षक नाग ने बचने के लिए देवराज इंद्र के आसन को भी लपेट ल‌िया, ज‌िससे देवराज इंद्र भी आसन समेत यज्ञ की अग्न‌ि भस्‍म होने वाले थे। इसी समय यज्ञ को बीच में ही रोक देना पड़ा। इससे नागों की प्रजाति पूरी तरह से भस्‍म होने से बच गई। 

इस यज्ञ के बाद नागों के जले हुए जख्‍मों से सही करने के लिए उन पर दूध और लावा चढ़ाया गया। तब कहीं जाकर नागों के प्राण बच सके और उनके जख्‍म ठंडे हुए। उसी समय से ये यह मान्‍यता चली आ रही है कि नागपंचमी के दिन जो भी सांपों को दूध और लावा अर्पित करेगा उसे सर्पदंश का भय नहीं रहेगा।

विज्ञान के अनुसार सांप को दूध पिलाना उनकी सेहत के प्रतिकूल मानता है। वैज्ञानिकों के अनुसार सांपों के ऐसी ग्रंथियां ही नहीं होतीं कि वे दूध पी सकें। सांप का भोजन दूध नहीं बल्कि कीड़े मकोड़े हैं। सांपों का पाचन तंत्र भी उन्‍हीं को खाने के लिए बना हे। दूध पीने से सांप की जान भी जा सकती है। इसलिए सांपों को दूध कभी नहीं पिलाना चाहिए। 
 

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