img

चीन की घटिया सोच और उसकी चालबाजी से पूरी दुनिया वाकिफ है। नीचे गिरने और ओछी हरकत करने की अगर कोई प्रतियोगिता होती तो चीन उसमें हर बार अव्वल ही रहता। चीन भारत को भी परेशान करने के लिए नए नए हथकंडे अपनाता ही रहता है। इस बार चालबाज चीन ने कैलाश मानसरोवर यात्रा में अड़ंगा डालने की कोशिश की है। चीन ने कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर कुछ परेशान करने वाले नियम बनाए हैं। साथ ही यात्रा के खर्चे को भी दोगुना कर दिया है।

कैलास मानसरोवर यात्रा के लिए भारतीयों को 1.85 लाख रुपए खर्च करने होंगे। अगर तीर्थयात्री अपनी सहायता के लिए नेपाल से किसी वर्कर या हेल्पर को साथ रखेगा तो 24 हज़ार रुपये एक्स्ट्रा चुकाने होंगे। इस शुल्क को ग्रॉस डायवर्जन भी कहा गया है। चीन का तर्क है कि यात्रा के दौरान कैलाश पर्वत के आसपास की घास को नुकसान पहुंचता है, जिसकी भरपाई यात्री से ही की जाएगी। किसी आम हिंदुस्तानी के लिए इतनी मोटी धनराशि चुकाना बहुत ही मुश्किल है।

चीनी सरकार ने नियम बनाया है कि वीजा पाने के लिए पांच लोगों का होना जरूरी है। इसके अलावा ऑनलाइन आवेदन स्वीकार नहीं होगा। यानी यात्री को पहले चीनी दूतावास के चक्कर काटने पड़ेंगे। इसके अलावा हर यात्री को काठमांडू बेस पर ही अपनी यूनिक आइडेंटिफिकेशन करानी होगी। इसके लिए फिंगर मार्क और आंखों की पुतलियों की स्कैनिंग होगी।

भारतीयों को परेशान कर रहा है चीन

नेपाली टूर ऑपरेटरों का कहना है कि कठिन नियम विदेशी तीर्थयात्रियों, विशेषकर भारतीयों के प्रवेश को सीमित करने के लिए बनाए गए हैं। बताया जा रहा है कि चीन ने यह नियम इसलिए भी बनाए हैं जिससे कि भारतीय कैलास मानसरोवर पर न जाए। यानी कि चीन भारतीयों को परेशान करना चाहता है। हिंदू अनुयायियों के बीच मान्यता है कि आज जहां कैलास मानसरोवर पर्वत शिखर है, वहीं भगवान शिव का वास है। इसलिए हर साल बहुत सारे हिंदू समुदाय के लोग वहां दर्शन के लिए जाते हैं। विदेश मंत्रालय ने इसके लिए समय भी निर्धारित किया है। केवल जून से सितंबर के बीच ही यह यात्रा आयोजित करवाई जाती है। 

--Advertisement--