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खनऊ ।। यूपी में गोरखपुर और फूलपुर के चुनावी नतीजों ने बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती के राजनीतिक एकांत में संगीत भर दिया है। जो खामोशी राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद बनी थी वो अब जीत की रणभेरी में बदल गई।

दरअसल, राजनीति का चरित्र ही यही होता है कि यहां दोस्ती और दुश्मनी अस्थाई होती है। तभी SP और BSP के बीच 25 साल पुरानी अदावत अब दावत में बदल गई है। मुलायम-कांशीराम के दौर से निकल कर अब मायावती के दौर की बीएसपी रिश्तों के इंजीनियरिंग के साथ सामने है।

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आपको बता दें कि BJP के विजयी रथ को मायावती ने उसी तरह रोकने का काम किया जिस तरह साल 1993 में मुलायम सिंह और कांशीराम ने साथ आकर राम लहर को रोका था। ये इत्तेफाक है कि 25 वर्ष पूर्व SP-BSP जब आपस में अलग हुए तो यूपी की राजनीति में BSP को सत्ता तक पहुंचने का मौका मिला। लेकिन इस बार जब दोनों एक हुए तो उन्हें सत्ताधारी पार्टी को पछाड़कर राज्य की सियासत में वापसी का मौका मिला।

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इस जीत का श्रेय मायावती की उस हामी को जाता है जो उन्होंने सपा के साथ सियासी तालमेल के लिए भरी। मायावती का सपा के साथ गठबंधन उनकी सियासी मजबूरी ही नहीं बल्कि वजूद के लिए भी महत्वपूर्ण था। भले ही मायावती उस गठबंधन को वोट शेयर के लिए तालमेल बताती हैं, लेकिन उन्होंने इस तालमेल से महागठबंधन के तार भी झनझना दिए ।

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ये ऐसी जीत है जो भले ही सपा को मिली लेकिन इस जीत में हाथी की हुंकार सुनाई दे रही है। मायावती की कूटनीतिक जीत से BSP के कोर वोटरों और कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ेगा। मोदी लहर के खिलाफ मायावती अब नई ताकत से हमले करेंगीं।

फोटोः फाइल

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