Up kiran,Digital Desk : आगरा की हवा में इस समय 'जहर' घुला हुआ है, लेकिन सरकारी आंकड़ों का खेल ऐसा है कि आम जनता कन्फ्यूज है कि वह किस पर भरोसा करे। स्मार्ट सिटी के सेंसर्स बता रहे हैं कि हवा बेहद खतरनाक है, वहीं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़े कह रहे हैं कि स्थिति उतनी खराब नहीं है। इन दोनों विभागों के आंकड़ों में दोगुने का अंतर है, लेकिन हकीकत यह है कि बाहर निकलने पर लोगों का दम घुट रहा है।
आइये, आगरा के इस 'सांसों के संकट' और सरकारी लापरवाही की पूरी कहानी को आसान भाषा में समझते हैं।
आगरा शहर, जो अपनी खूबसूरती और ताज के लिए जाना जाता है, इन दिनों 'गैस चेंबर' बनने की राह पर है। अगर आप घर से बाहर निकल रहे हैं, तो जरा संभल जाइए। शहर के स्मार्ट सिटी सेंसर्स बता रहे हैं कि कई जगहों पर एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 300 से लेकर 478 तक पहुंच गया है। ये वो स्तर है जहाँ एक स्वस्थ इंसान भी बीमार पड़ सकता है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि सरकारी फाइलों और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के मीटरों में सब कुछ कंट्रोल में दिखाया जा रहा है।
किसका सच? CPCB बनाम स्मार्ट सिटी
ताजनगरी में एक अजीब स्थिति बन गई है। स्मार्ट सिटी के सेंसर्स चीख-चीख कर कह रहे हैं कि हवा जहरीली है, जबकि प्रदूषण बोर्ड के आंकड़े इसे 'खराब' श्रेणी में रखकर मामला हल्का कर रहे हैं।
स्मार्ट सिटी के मुताबिक, टेढ़ी बगिया में एक्यूआई 478 के खतरनाक स्तर पर है, शहीद नगर में 325 और ईदगाह पर 310 है।
वहीं दूसरी तरफ, सीपीसीबी के आंकड़े कहते हैं कि शास्त्रीपुरम में एक्यूआई 187 और संजय प्लेस में मात्र 159 है। एक ही शहर में दो विभागों के आंकड़ों में दोगुने से ज्यादा का अंतर समझ से परे है।
मेट्रो की धूल और दावों की पोल
इस प्रदूषण में बड़ा योगदान 'उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कॉरपोरेशन' (UPMRC) के निर्माण कार्य का भी है। राजामंडी रेलवे स्टेशन के ठीक सामने मेट्रो का काम चल रहा है। वादे तो बहुत थे कि धूल उड़ने से रोकने के लिए पानी का छिड़काव होगा और नियमों का पालन किया जाएगा। लेकिन हकीकत में, साइट पर मिट्टी और रेत के ढेर लगे हैं और जरा सा वाहन निकलने पर धूल के गुबार उड़ रहे हैं।
स्थानीय निवासी और पूर्व पार्षद संजय राय बताते हैं कि "राजामंडी स्टेशन पर 5 मिनट खड़ा रहना मुश्किल है, सांस फूलने लगती है। पिछले 15 दिनों से मैंने वहां पानी का छिड़काव होते नहीं देखा।" यही हाल आरबीएस कॉलेज और दिल्ली गेट के आसपास का है।
अजीबोगरीब लॉजिक: दयालबाग से साफ़ संजय प्लेस?
प्रदूषण बोर्ड के आंकड़े किस हद तक चौकाने वाले हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि उनके मुताबिक संजय प्लेस की हवा, दयालबाग से ज्यादा साफ है।
यह बात किसी के गले नहीं उतर रही। संजय प्लेस शहर का सबसे व्यस्त कमर्शियल इलाका है, जहाँ जाम लगा रहता है, मेट्रो का काम चल रहा है और रेस्टोरेंट्स में कोयले जल रहे हैं। वहीं दयालबाग हरियाली से भरा इलाका है और वहां गाड़ियों का शोर भी कम है। फिर भी सरकारी मशीनें बता रही हैं कि दयालबाग (एक्यूआई 224) की हवा संजय प्लेस (एक्यूआई 159) से खराब है। पर्यावरणविद इसे आंकड़ों की बाजीगरी बता रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट तक गूंजेगी बात?
शहर के पर्यावरणविद और जागरूक लोग अब चुप बैठने के मूड में नहीं हैं। याचिकाकर्ता संजय कुलश्रेष्ठ का कहना है कि "आंकड़े चाहे कुछ भी कहें, इंसान का शरीर बता देता है कि हवा जहरीली है। अफसर जिस प्रदूषण को छिपा रहे हैं, उसका जवाब उन्हें सुप्रीम कोर्ट में देना होगा।" वहीं डॉ. शरद गुप्ता ने कहा है कि ग्रैप (GRAP) लागू करने से बचने के लिए आंकड़ों से छेड़छाड़ बंद होनी चाहिए। अस्पतालों में बढ़ते सांस के मरीज इस बात का सबूत हैं कि आगरा की हवा ठीक नहीं है।
अब देखना यह होगा कि क्या प्रशासन आंकड़ों को सुधारकर असलियत स्वीकार करता है और धूल रोकने के लिए कोई कड़े कदम उठाता है, या जनता यूं ही घुट-घुट कर जीने को मजबूर रहेगी।
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