लखनऊ।। शिक्षा विभाग में एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है। परिवहन विभाग में कार्यरत एक बाबू ने विभाग को गुमराह करके एक बड़ा खेल कर दिया है। ऐसा नहीं है कि बाबू के इस कृत्य से विभाग अनजान है बल्कि ये खेल खुलेआम हुआ। मामला जालौन जनपद का है जहाँ परिवहन विभाग के बाबू रूप नरायन वर्मा ने अपनी महिला मित्र की मृत्यु के बाद मृतक आश्रित के रूप में बेटे को नौकरी दिलवा दी। रूप नरायन की पत्नी का पहले ही देहांत हो चुका था।
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सूत्रों की मानें तो आशिक मिजाज परिवहन विभाग के इस बाबू की एक महिला मित्र सावित्री देवी थी जिसके साथ संबंधों को लेकर बेटे चंद्र प्रकाश वर्मा से आये दिन परिवार में खटपट होती रहती थी। लेकिन पत्नी के देहांत के बाद रूप नरायन वर्मा सावित्री देवी के साथ रहने लगा। सावित्री देवी सरकारी नौकरी में थी। जीजीआईसी गोहन में अध्यापिका के पद पर कार्यरत सावित्री देवी को परिवहन विभाग के बाबू रूप नरायन वर्मा से रिश्ता रखना बहुत महंगा पड़ गया।
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बाद में संदिग्ध परिस्तिथियों में सावित्री देवी की मौत हो गयी और संदिग्ध आरोपी के रूप में रूप नरायन वर्मा के बेटे चंद्र प्रकाश वर्मा का नाम सामने आया। बताया जा रहा है कि ये मामला काफी दिनों तक चला और बताया जा रहा है कि इस संदिग्ध हत्या के चलते चंद्र प्रकश वर्मा को कई दिनों तक पुलिस हिरासत में भी रहना पड़ा। लेकिन फिर अपने रसूख और धनबल के चलते परिवहन विभाग के इस नटवर लाल बाबू ने जैसे-तैसे अपने बेटे को मामले से बरी करवा लिया।
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बाद में आश्चर्यजनक तरीके से सावित्री देवी के मृतक आश्रित के रूप में रूप नरायन वर्मा के बेटे चंद्र प्रकाश वर्मा को वर्ष 2003 में शिक्षा विभाग में नौकरी मिल गयी। चंद्र प्राक्स वर्मा इस समय कनिष्ठ सहायक के पद पर राजकीय इंटर कॉलेज सैदनगर जनपद जालौन में तैनात है। इस मामले को लेकर जब चंद्र प्रकश वर्मा से जानकारीके लिए जैसे ही उनकी नौकरी को लेकर सवाल पुछा गया तो उन्होंने फोन काट दिया।
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इस सम्बद्ध में गोहन जीजीआईसी में शिक्षिका के पद पर वर्तमान में तैनात एक अध्यापिका जो पूर्व में प्रधानाचार्य के पद पर कार्य कर चुकीं है ने बताया कि सावित्री देवी की मृत्यु के बाद मृतक आश्रित के रूप रु नरायन वर्मा के बेटे को नौकरी मिली है। सावित्री देवी की संदिग्ध मौत के मामले में चंद्र प्रकाश वर्मा को लेकर जब उनसे पुछा गया गया तो उन्होंने बताया कि ये मामला काफी पुराना है। उन्हें इस सम्बन्ध में ज्यादा जानकारी तो नहीं है लेकिन ये मामला काफी दिनों तक चला था।
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मृतक आश्रित के रूप में नौकरी हासिल करने वाले चंद्र प्रकाश वर्मा की नियुक्ति सवालों के घेरे में आ गयी है। पहला जब मृतक सावित्री देवी का विवाह रूप नरायन वर्मा के साथ हुआ ही नहीं तो उनके बेटे चंद्र प्रकाश वर्मा को मृतक आश्रित के रूप में नौकरी कैसे मिल गयी जबकि उसका नाम खुद हत्या के संदिग्ध रूप में सामने आया था। दूसरा यदि ये मान भी लिया जाये कि सावित्री देवी रूप नरायन वर्मा की वैध पत्नी थीं तो भी उनके बेटे को मृतक आश्रित के रूप में नियमानुसार नौकरी नहीं मिल सकती।
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यहाँ ये भी उल्लेखनीय है कि सरकारी सेवा में आने के बाद सम्बंधित कर्मी को अपने परिवार/आश्रितों के बारे में पूरी जानकारी देनी होती है। रूप नरायन वर्मा परिवहन विभाग में बाबू के पद पर कार्यरत हैं तो निश्चित ही उनके सरकारी अभिलेखों में उनके आश्रितों का नाम भी दर्ज होगा। उसी तरह सावित्री देवी ने भी सरकारी नौकरी में आने के बाद अपने अविवाहित या विवाहित होने का उल्लेख जरूर किया होगा। ये तो जाँच के बाद ही सामने आएगा कि नटवरलाल बाबू ने कब सावित्री देवी को पत्नी के रूप में दर्जा कब दिया। उनके जीवित रहते या फिर बेटे को नौकरी दिलाने के चक्कर में मरने के बाद मृतक सावित्री देवी का नाम पत्नी के रूप में दर्ज कराने के लिए सरकारी अभिलेखों में खेल किया।
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बता दें कि मृतक आश्रित नियमावली को लेकर जारी शासनादेश में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि यदि आश्रित के माँ और बाप दोनों ही सरकारी सेवा में हैं तो आश्रितों को मृतक आश्रित के रूप में नौकरी नहीं दी जा सकती।
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