Up kiran,Digital Desk : देश के चीफ जस्टिस (CJI) सूर्यकांत ने एक बहुत बड़ी और गंभीर बात कही है। उन्होंने इस बात पर नाराज़गी जताई है कि आजकल एक नया चलन शुरू हो गया है, जहाँ जज अगर सुनवाई के दौरान कोई सवाल पूछते हैं या कोई टिप्पणी करते हैं, तो उसे लेकर बाहर उनकी आलोचना होने लगती है और सोशल मीडिया पर बातें बनाई जाने लगती हैं।
उन्होंने साफ-साफ चेतावनी दी कि कोई यह न सोचे कि ऐसी बातों से जजों पर दबाव बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा, "मैं धमकियों को बर्दाश्त करने वालों में से नहीं हूँ, मैं एक बहुत सख्त व्यक्ति हूँ।"
मामला क्या था?
CJI ये बातें कर्नाटक के पूर्व सांसद प्रज्वल रेवन्ना से जुड़े एक यौन उत्पीड़न के मामले की सुनवाई के दौरान कह रहे थे। इस केस में यह मांग की गई थी कि मामले की सुनवाई किसी और जज से कराई जाए, क्योंकि मौजूदा जज पक्षपात कर सकते हैं। CJI ने इस याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि किसी पिछली टिप्पणी के आधार पर जज पर पक्षपात का आरोप लगाना सही नहीं है।
तो CJI ने असल में क्या कहा?
- यह एक सोची-समझी चाल है: CJI ने कहा कि जब कोई मामला कोर्ट में चल रहा होता है, तो उस पर बाहर बैठकर टिप्पणी करना एक 'सोची-समझी चाल' है।
- मकसद जजों को डराना है: उनका मानना है कि यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि जजों पर एक तरह का दबाव बनाया जा सके और वे वकीलों से तीखे या मुश्किल सवाल पूछने से डरें।
- सवाल पूछना जज का काम है: उन्होंने समझाया कि जब जज किसी भी पक्ष से सवाल पूछते हैं, तो इसका मतलब यह नहीं होता कि उन्होंने अपना मन बना लिया है। सवाल तो सिर्फ इसलिए पूछे जाते हैं ताकि मामले की तह तक जाया जा सके और दोनों पक्षों की दलीलों को परखा जा सके।
माना जा रहा है कि चीफ जस्टिस का यह गुस्सा सिर्फ इस केस तक ही सीमित नहीं था, बल्कि यह उन रिटायर्ड जजों और वकीलों के एक समूह को भी जवाब था, जिन्होंने हाल ही में रोहिंग्या मामले पर CJI की कुछ टिप्पणियों को लेकर एक खुला पत्र लिखा था।
साफ है, चीफ जस्टिस ने यह संदेश दे दिया है कि न्यायपालिका किसी भी बाहरी दबाव में आए बिना अपना काम करती रहेगी।
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