देहरादून॥ वर्ष भर बाद 2022 के विधानसभा इलेक्शन में कांग्रेस का चेहरा कौन होगा, इस पर बहस छिड़ गई है। बहस के केंद्र में कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत हैं, जो चाहते हैं कि हैं कि पार्टी अपने सीएम कैंडिडेट का चेहरा अभी से जाहिर कर दे। ताकि कोई उलझन न रहे और पूरी पार्टी उसकी अगुवाई में एकजुट होकर इलेक्शन फतह कर ले। रावत की इस राय पर पार्टी के भीतर अलग-अलग राय उभरकर सामने आ रही है। इस बहस की रोशनी में यह दिलचस्प तथ्य भी कांग्रेस के साथ जुड़ा रहा है कि इलेक्शन के दौरान चेहरा दिखाने से ज्यादा उसे छिपाए रखने पर पार्टी ने ज्यादा भरोसा किया है।
केवल 2017 के विधानसभा इलेक्शन के बारे में कहा जा सकता है, जबकि कांग्रेस का इलेक्शन में चेहरा एकदम साफ था। तत्कालीन सीएम हरीश रावत की अगुवाई में ही यह पूरा इलेक्शन कांग्रेस ने लड़ा, हालांकि पार्टी को बुरी तरह शिकस्त भी खानी पड़ी थी। इसी इलेक्शन में उसका सबसे कम 11 सीटों का स्कोर भी सामने आया था। सीएम कैंडिडेट घोषित करने के संबंध में यह इलेक्शन एक खास वजह से सबसे अलग रहा था।
सन् 2017 के इस इलेक्शन से इतर राज्य बनने के बाद हुए सभी इलेक्शन में कांग्रहेस चेहरे के मामले में खुलकर सामने नहीं आई। सबसे पहले, राज्य के पहले इलेक्शन की बात करें। 2002 में जब इलेक्शन हुए, तब हरीश रावत कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे, लेकिन पार्टी किसी एक नेता को आगे करते हुए इलेक्शन में जाती नहीं दिखी।
यही वजह थी कि संगठन के लिए खासी मेहनत करने वाले रावत सत्ता में आने पर सीएम नहीं बन पाए और दिल्ली से एनडी तिवारी को देहरादून भेजकर हाईकमान ने उनकी ताजपोशी करा दी। इसके बाद 2007 और 2012 के इलेक्शन हुए, जिसमें कांग्रेस को एक इलेक्शन में हार और दूसरे में जीत मिली, लेकिन सीएम कैंडिडेट किसी में भी घोषित नहीं किया गया। कांग्रेस इन इलेक्शनों में अपने क्षत्रपों हरीश रावत, विजय बहुगुणा, सतपाल महाराज, डॉ इंदिरा ह्रदयेश, हरक सिंह रावत की खींचतान से ही सहमी रही।
कांग्रेस में हरीश रावत की अगुवाई में एक मजबूत धड़ा मौजूद है तो दूसरी ओर प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष डॉ इंदिरा की जुगलबंदी है। दोनों धड़ों की एक दूसरे को हाशिये पर धकेलने की कोशिश है। ऐसे में हाईकमान पर चेहरा घोषित करने की मांग का कितना प्रभाव पड़ता है, ये देखने वाली बात है। वैसे, कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि पार्टी का ध्यान वर्तमान में संगठन की मजबूती का है। इलेक्शन किस तरह से लड़ा जाना है, यह हाईकमान तय करेगा।