लखनऊ। पूर्व में केंद्र सरकार ने विभिन्न राज्यों के पुरावशेष एवं बहुमूल्य कलाकृत धरोहर के पंजीकरण की योजना को राज्य सरकार के जरिए लागू किया था। योजना को जमीन पर उतारने के लिए राज्य सरकार ने रजिस्ट्रीकरण अधिकारियों की तैनाती की थी। अब जब केंद्र सरकार ने इस योजना को समाप्त कर दिया है और पंजीकरण का काम खुद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कर रही है। उसके बावजूद अयोध्या में तैनात संस्कृति विभाग के रजिस्ट्रीकरण अधिकारी डॉ. लवकुश द्विवेदी लगातार अपने पद पर बने हुए हैं। अपने पद का कोई भी कार्य न करने के बाद भी साल 2012 से लगातार वेतन वृद्धि प्राप्त कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में उनको वेतन वृद्धि का लाभ मिलना चाहिए या नहीं? इसको लेकर विभागीय निदेशक शिशिर ने शासन को पत्र लिखा है। पर शासन मौन है।
फोटो : डॉक्टर लव कुश द्विवेदी
आपको बता दें कि डॉ. लवकुश द्विवेदी, रजिस्ट्रीकरण अधिकारी, पुरावशेष एवं बहुमूल्य कलाकृति, अयोध्या के नियुक्ति प्राधिकारी शासन में निहित है। उन पर उच्च अधिकारियों से दुर्व्यवहार का भी आरोप है। यह भी आरोप है कि वह कनिष्ठ कर्मियों से समन्वय स्थापित कर कोई भी कार्य सुचारू रूप से नहीं करते हैं। इस सिलसिले में उपनिदेशक, अन्तरराष्ट्रीय संग्रहालय, अयोध्या की तरफ से 1 जुलाई 201 को पत्र लिखकर विभाग के आला अफसरों से दिशा निर्देश मांगा है। उसकी वजह भी साफ है, क्योंकि पुरावशेष एवं बहुमूल्य कलाकृति, अधिनियम-1972 के कार्यान्यवन के संबंध में यूपी सरकार द्वारा स्वीकृत रजिस्ट्रीकरण अधिकारियों और सपोर्टिंग स्टॉफ के अस्थायी पदों की अवधि बढ़ाए जाने संबंधी फाइल पर क्या फैसला हुआ, यह अस्पष्ट है।
दरअसल, भारत सरकार, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, नई दिल्ली की तरफ से 3 अप्रैल 2017 को पत्र लिखकर अवगत कराया गया था कि पुरावशेषों के पंजीकरण का काम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के द्वारा ही कराया जाएगा। उसके मंडलीय कार्यालयों में कार्यरत उप अधीक्षण पुरातत्व विधि और सहायक अधीक्षण पुरातत्व विधि यह काम करेंगे। ज्यादातर मंडलीय कार्यालयों में पुरावशेषों के पंजीकरण का काम शुरु भी कर दिया गया है। ऐसी स्थिति में कार्यालय पुरावशेष एवं बहुमूल्य कलाकृति, अयोध्या के अधिकारी और कर्मचारियों को सामान्य सालाना सैलरी वृद्धि दिया जाना संभव नहीं दिख रहा है। अयोध्या स्थित कार्यालय के अधिकारियों और कर्मचारियों के नौकरी की अवधि 14 मार्च 2012 के शासन के पत्र द्वारा बढ़ाई गई थी। बाद में उनके नौकरी की अवधि बढ़ाकर 29 फरवरी 2017 तक नौकरी की अवधि बढ़ाने की सिफारिश की गई थी।
लवकुश द्विवेदी ने संगीत नाटक अकादमी में कार्यालय बना रखा है। जिसके मेंटीनेंस में अब तक लाखो रुपये खर्च हो चुके हैं। जबकि बाइलाज के हिसाब से इनका एक कार्यालय जवाहर भवन के नवें तल और दूसरा अयोध्या में है। ऐसे में एक अन्य कार्यालय स्थापित करने की अनुमति उन्हें कहां से मिली? यह रहस्य बना हुआ है।
रामायण कान्क्लेव और राम जन्मोत्सव एक साथ क्यों?
अयोध्या में बीते 29 व 30 मार्च, 2023 को रामायण कान्क्लेव का आयोजन प्रस्तावित था। राम जन्मोत्सव भी मनाए जाने की तैयारी की जा रही थी। दोनों के लिए अलग-अलग बजट की व्यवस्था का प्रावधान था। पर जब दोनों आयोजन समायोजित करा दिए गए तो लोगों को हैरानी हुई। आपको बता दें कि रामायण कान्क्लेव अयोध्या शोध संस्थान का एक अहम आयोजन रहा है। यह प्रदेश के कम से कम 16 जनपदों में होता है। सितम्बर 2022 में इसके समापन आयोजन में राष्ट्रपति तक आये थे। इस कार्यक्रम का बजट काफी बड़ा होता है। उस बीच समायोजन का यह खेल किसी के गले के नीचे नहीं उतर रहा है। इस मामले की जांच की मांग की जा रही है।
19 एकड़ जमीन पर नहीं बनी रामलीला संकुल, कहां गया बजट?
अंतरराष्ट्रीय रामलीला संकुल के लिए अयोध्या के मांझा बरहटा में हाई-वे के किनारे 19 एकड़ जमीन विभाग द्वारा खरीदी गई थी। जिस पर मुक्ताकाशी मंच और चाहरदीवारी का निर्माण किया गया था। यह कार्य डाक्टर लवकुश द्विवेदी देख रहे थे। उस समय वह रजिस्ट्रीकरण अधिकारी, अयोध्या के पद पर कार्यरत थे। यह योजना आज तक अधूरी है। यदि इस मामले की उच्चस्तरीय जांच हो जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। मायावती सरकार में साल 2009 में यह योजना स्वीकृत हुई थी। तभी से यह जमीन खाली पड़ी है और ठेकेदार उसी जमीन पर आराम से खेती करता आ रहा है। अयोध्या शोध संस्थान बार-बार कार्यक्रमों का हवाला देते हुए लवकुश द्विवेदी के कार्यकाल में स्थानीय आडिट को टालता रहा है। ऐसा क्यों होता है? यह विवेचना का विषय है।
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