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मणिपुर हिंसा को लेकर विपक्ष ने केंद्र सरकार के विरूद्ध लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है। कांग्रेस के गौरव गोगोई ने मोदी सरकार के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया। जिसे 50 सांसदों के समर्थन के बाद लोकसभा स्पीकर ने स्वीकार कर लिया।
अब अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में चर्चा होगी। इस प्रस्ताव पर लोकसभा अध्यक्ष गुरुवार को सभी प्रमुख दलों के नेताओं से चर्चा करेंगे। इसमें तय होगा कि किस दिन अविश्वास प्रस्ताव लाना है, किसी को बोलने के लिए कितना समय देना है।
सूत्रों के मुताबिक, अविश्वास प्रस्ताव अगले हफ्ते सदन में पेश किया जाएगा। इस पर 2 दिन तक चर्चा हो सकती है। ऐसे में यह देखना जरूरी है कि अगले हफ्ते मोदी सरकार विपक्ष के प्रस्ताव पर क्या टिप्पणी करती है।
राज्य में हिंसा को लेकर विपक्ष ने सरकार के विरूद्ध हल्ला बोल दिया है। अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस को स्वीकार करने के बाद लोकसभा अध्यक्ष इसे संसद में पढ़ते हैं। 50 सांसदों का समर्थन मिलने के बाद चर्चा शुरू होती है। फिर एक वोट लिया जाता है।
विपक्ष को पता है, मोदी सरकार के पास बहुमत है और सरकार को कोई खतरा नहीं है। किसी भी अविश्वास प्रस्ताव के लिए 50 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता होती है। किंतु सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने के बाद अगर सरकार को वहां उपस्थित और मतदान करने वाले 50 प्रतिशत से अधिक सदस्यों का समर्थन प्राप्त हो तो वह सरकार सुरक्षित रहती है।
मोदी सरकार के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव को भाजपा अपने दम पर हरा देगी। इसलिए मोदी को चिंता नहीं है। क्योंकि मोदी सरकार के पास 329 सांसदों की ताकत है जबकि विपक्षी पार्टी के पास 142 सांसदों की ताकत है। अविश्वास प्रस्ताव लाने के पीछे विपक्ष की मंशा यह है कि पीएम मोदी संसद में मणिपुर हिंसा पर बोलें।
दिलचस्प बात यह है कि विपक्ष दूसरी बार मोदी सरकार के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव ला रहा है। 2018 में पहली बार टीडीपी ने संसद में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। इसे सरकार ने 199 वोटों के अंतर से जीता था। उस वक्त विपक्ष ने प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना की थी।
लोकसभा में अब तक 27 बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा चुका है। पहला अविश्वास प्रस्ताव 1963 में चीन युद्ध के बाद जवाहरलाल नेहरू सरकार के विरूद्ध लाया गया था। ज्यादातर अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी के विरूद्ध आये।
इंदिरा गांधी के विरूद्ध 15 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया किंतु हर बार उनकी सरकार सुरक्षित रही। नरसिम्हा राव के विरूद्ध 3 बार। एक बार राजीव गांधी के विरूद्ध और एक बार अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था।
3 बार गिर चुकी है सरकार
अविश्वास प्रस्ताव के कारण केंद्र में मोरारजी देसाई, वीपी सिंह और अटल बिहारी वाजपेई की सरकार गिर गई। मोरारजी देसाई की सरकार के विरूद्ध 2 अविश्वास प्रस्ताव लाए। पहले तो उन्हें इससे कोई परेशानी नहीं हुई। किंतु 1978 में दूसरे प्रस्ताव में देसाई की सरकार गिर गयी। घटक दलों की नाराजगी के कारण मोरारजी देसाई सरकार अल्पमत में आ गयी। इसकी भविष्यवाणी करने के बाद, देसाई ने विभाजन से पहले इस्तीफा दे दिया।
1990 में राम मंदिर विवाद पर भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। फिर 10 नवंबर 1990 को लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सरकार बहुमत साबित नहीं कर सकी। इसलिए वीपी सिंह सरकार गिर गई। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एनडीए के दौरान विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव लाए थे। जब वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तब भी उन्हें अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था। पहली बार वाजपेयी सरकार नहीं बचा सके। किंतु दूसरी बार वह अपने विरोधियों पर भारी पड़ गए।